________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भूमिका
प्रेरणा स्रोत और कार्य
छः दशक पूर्व मेरे जन्म स्थान बालोतरा में होली के असभ्य व अत्योच्छखल हुड़दंग में राव आदि के भद्दे स्वांग बनते थे और अश्लील गीत गाये जाते थे। परिणामस्वरूप गांव में अनेक झगड़े-टंटे हो जाते थे । कुछ सहयोगीसाथियों के साथ यह निश्चित किया गया कि इन निर्लज्ज सवारियों और अश्लील गीतों को सर्वथा बन्द कर वेद भगवान की सवारी निकाल कर, उसके साथ स्थान-स्थान पर राजस्थानी भाषा में और राजस्थानी तों में ही समाज सुधार के गायन गाये जायं तथा तत्संबंधी प्रवचन राजस्थानी भाषा में किये जायं।
सुधार-गीत बनाते समय राजस्थानी भाषा की अनूठी लक्षणा और व्यंजना शक्ति का अनुभव हुमा और इन गीतों के ऐसे विशिष्ट शब्दों का कोश बनाने के संकल्प के साथ हिन्दी में उनके अर्थ लिखने का कार्य प्रारम्भ किया। एक ही दिन में दो सौ शब्दों का संकलन कर लिया। यही प्रेरणा का प्रथम सोपाम था। कुछ पारिवारिक संस्कारों और कुछ सुधारवादी वृत्ति तथा साहित्यिक रुचि ने उपर्युक्त प्रवृत्ति में इतना रस बढ़ाया कि थोड़े ही समय में निजी संग्रह के ग्रंथों में से मैंने अकेले ने लगभग दस हजार शब्दों का संकलन तथा रफ (Rough) संपादन कर लिया पर गाँव में विद्यापोसक मंडल, कन्यापाठशाला (मारवाड़ में प्रथम), सरस्वती पुस्तकालय आदि की स्थापना
और उनका सुचारु रूप से संचालन इस प्रवृत्ति को और आगे बढ़ाने में कुछ बाधक ही रहे।
कुछ समय पश्चात् मेरे परम मित्र स्व० रामयश गुप्त 'नैणसी री ख्यात' की हस्तलिखित प्रति गूगा गांव से लाये और कहा कि इसका संपादन करना है। प्रतिलिपि तयार को गई । इस ग्रथ का सम्पादन करते समय शब्दों के अर्थ देने के लिए राजस्थानी भाषा के शब्द कोश की नितांत आवश्यकता का अनुभव हुप्रा । ख्यात के शब्दों का एक अलग कोश भी आवश्यक था। लम्बे समय तक ख्यात की अन्य प्रतियों के प्रभाव में काम मंद गति से ही चलता रहा।
सन् १९३२ में जोधपुर निवास के समय राज्य के भूतपूर्व प्राइम मिनिस्टर सर शुकदेव प्रसाद काक ने, जो डिंगल का एक अद्वितीय कोश स्व. पं० रामकरणजी पासोपा के देखरेख में निजी खर्चे से बनवा रहे थे, मेरी
For Private and Personal Use Only