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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिसणा त्रिनेत्र । ५७ ) त्रिनेत्र-(न०) महादेव । शिव । वह स्थान । त्रिपथ । २. सीन जनों का त्रिपट-(वि०) १. तिगुना। २. तीन परतों साथ । वाला । ३. दुष्ट । ४. कष्टदायी। त्रिमासिक-(वि०) तीन में होने वाला। त्रिपत-(वि०) तृप्त । संतुष्ट ।। त्रिया-(ना०) १. स्त्री । २. पत्नी । त्रिपथ-(न०) १. जहाँ तीन मार्ग मिले वह त्रिलोक-(न०) त्रिभुवन । तीन लोक (स्वर्ग स्थान । २. स्वर्ग, पाताल और मृत्युलोक । ताल)। त्रिपथगा-(ना०) गंगा। त्रिलोकी-(ना०) त्रिलोक । (वि०) त्रिलोक का। त्रिपथा-(ना०) गंगा । त्रिपथगा। त्रिपंखो-(न०) डिंगल का एक छंद। त्रिलोकीनाथ-(न०)तीनों लोकों का स्वामी। त्रिभुवनपति । परमात्मा। त्रिपाठी-(न0) ब्राह्मणों की एक अल्ल । त्रिलोचण-(न०) शिव । महादेव । (वि०) तीन वेदों का पठन करने वाला। त्रिलोचन । त्रिवेदी। त्रिपिटक-(न०) सुत्त, विनय और अभिधाम त्रिलोचन-दे० त्रिलोचण। त्रिलोयण-(न०) त्रिलोचन । शिव । इन तीनों प्रकार के बौद्ध ग्रन्थों का समूह । महादेव । त्रिपुरार(न०) त्रिपुरारि । महादेव । त्रिवट-दे० तीवट । त्रिपुड-(न०) तीन रेखाओं वाला शैव त्रिवलि-(न0) पेट के तीन बल । पेट के तिलक । त्रिपुण्ड्र । ऊपर पड़ने वाली तीन वलि । त्रिवलि । त्रिपोळियो-दे० तिपोळियो। त्रिवाड़ी-(न0) ब्राह्मणों की एक प्रल्ल । त्रिफला-(न०) हरे, बहेड़ा और आँवला त्रिपाठी । तिवारी। इन तीनों का सामाहार या चूर्ण । त्रिविक्रम-(न०) विष्णु । त्रिबंक-(न०)१. डिंगल का एक गीत-छंद । त्रिविष्टप-(न0) स्वर्ग । २. नगाड़ा। त्रिवेणी-(ना०) १. गंगा, यमुना और त्रिभग-(न०) भाला। सरस्वती। २. वह स्थान जहाँ तीनों का त्रिभंग-(वि०) १. जो पाँव, कमर और संगम होता है । प्रयाग । ३. इड़ा,पिंगला गरदन इन तीनों जगहों से टेढ़ा हो। और सुषम्ना-ये तीनों नाडियाँ (हठयोग)। (न०) इस प्रकार की टेढ़ाइयों से खड़े त्रिवेदी-110) तीन वेदों को जानने वाला। होने की स्थिति । २. ब्राह्मणों की एक अल्ल । त्रिभंगी-(न०) १. एक छंद । २. एक राग। त्रिशक्ति-दे० त्रिसकति । ३. एक ताल । दे० त्रिभंग। त्रिशल-(न)तीन अनियों वाला एक शस्त्र । त्रिभाग-दे० विभागो। त्रिशूल । शिवास्त्र । विभागो-(न०) १. भाला। २. तीन धार त्रिस-(10) तृषा । प्यास । तिस । वाला शस्त्र। त्रिसकति-(ना०) १. दुर्गा, सरस्वती और त्रिभांड-दे० तिरभाँड । लक्ष्मी । तीन देवियां । त्रिशक्ति । २. त्रिभूवरण-(न०) स्वर्ग, मृत्यु और पाताल, दुर्गा । ३. गायत्री। ये तीनों लोक । त्रिभुवन । त्रिसणा-(न०) १. तृष्णा। प्यास । २. त्रिभुवन-दे० त्रिभुवण । अप्राप्त वस्तु को पाने तीव्र इच्छा । ३. त्रिभेटा-(न०) जहाँ तीन मार्ग मिलते हों, लोभ । For Private and Personal Use Only
SR No.020590
Book TitleRajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
PublisherPanchshil Prakashan
Publication Year1993
Total Pages723
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size12 MB
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