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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण-प्रतीत ( ३२५ ) गुरिणयणे (ना०) १. रस्सी। २. धनुष की डोरी। गुरणपचा-दे० गुणचास । प्रत्यंचा। गुरगपचास-दे० गुणचास । गुण-प्रतीत-(न०) गुणातीत । निर्गुण पर- गुण-पाड़-(न०) प्राभार । उपकार । मेश्वर । परब्रह्म। गुण-बाहिरो-(वि०) १. गुणहीन । २. गुण-आगम- (न०)१. परब्रह्म महिमा । २. प्रभावहीन । महिमा रहित । ३.अवगुणी। भक्त ईसरदास-बारहठ द्वारा रचित एक दोषी । ४. खोटो । खोटा। भक्ति ग्रन्थ । (गुण आपण, गुण निंदा- गुणमोती-(न०) बढ़िया और बड़ा मोती। स्तुति इत्यादि इनके रचे हुए 'गुण' संज्ञक गुणव-(न0)१. स्तुति । प्रार्थना । २. भक्ति । आठ ग्रन्थ प्राप्त हैं जो इनके अन्य काव्य ३. गुणानुवाद । गुणावली । गुणराशि । ग्रन्थों के अतिरिक्त हैं)। ४. प्रशंसा । गुणकारी-(वि०) लाभकारी। गुणवत्ता-(ना०) १. गुणयुक्तता । २. गुण-गरवो-(वि०)गम्भीर । धीर । शांत । उत्तमता । श्रेष्ठता । २. गुणों में गरुपा। धीर । गुणी । ३. गुणवंत-दे० गुणवान । गौरवशाली। गुणवंती-(वि०) गुणवाली। सुलक्षणा । गुणगान-(न०) स्तुति । प्रशंसा। गुणशालिनी। गुणग्राम-(न०) गुण समूह । गुणवाचक-(वि०)१. जो गुण को बतलावे । गुण-ग्राहग-(न०) १. गुणों का ग्राहक । २. विशेषण । (घ्या०)३. प्रशंसक । २. काव्यरसिक। गुरगवान-(वि०) १. गुणवंत । २. विद्वान । गुणचाळी-(वि०) तीस और नौ। उन- गुण-वृद्धिविधान-दे० वर्ण वार्धक्य विधान। चालीस । उनतालीस । (न०) तीस और गुणसठ-(वि०) १. पचास और नौ । (न०) नौ की संख्या ३६' । पचास और नो की संख्या '५६'। उनसठ । गुणचाळीस-दे० गुणचाळी। गुरणसाठ-दे० मुणसठ। गुणचास-(वि०) चालीस और नौ। उन- गुणहीण-(वि०)१. गुणहीन । गुणरहित । चास । उनपचास । गुणपचास । (न०) २. उपकार को नहीं मानने वाला । चालीस और नौ की संख्या ४६' । कृतघ्न । गुणचोर-(वि०) १. कृतघ्न । २. खल। गुणंतर-(वि०) साठ और नौ। (न०) साठ दुष्ट । और नौ की संख्या ६६' । उनहत्तर । गुरगणी-(ना०) पाठशाला में पड़े हुए और गुणा-(न०) १. एक संख्या को दूसरी संख्या पढ़ाए जाने वाले पाठों (पट्टी पहाडे आदि) से उतनी ही बार बढ़ाने की अंकगणित की विद्यार्थियों द्वारा सामूहिक रूप से की की एक प्रक्रिया । २. बार । बेर । जानेवाली आवृत्ति । गणना। गणना- गुणाकार-(न०) गुणा । गुणन । (वि०) वृत्ति । गुण करने वाला । लाभदायक । गुणगो-(क्रि०) गुणा करना। दे० गणणो गुणानुवाद-(न०) प्रशंसा । स्तुति । तथा गिरणणो। गुणावळो-(ना०) १. यशोगान । गुणगान । गुणताळीस-दे० गुण वाळीस । २. माला। गुरगती-दे० गुणतीस। गुणियण-(न०) १. गुणीजन । गुणवान गुणतीस-(वि०) बीस और नौ । उनतीस। लोग । २. पंडित जन । ३. गवैया । ४. (न०) उनतीस की संख्या । २६ कवि। ५. यशगायक । For Private and Personal Use Only
SR No.020590
Book TitleRajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
PublisherPanchshil Prakashan
Publication Year1993
Total Pages723
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size12 MB
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