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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काठो ( २२५) कातियो राजपूतों की एक उपजाति । ३. शरीर काणी-(वि०) एक प्रांख वाली । काणंखी। की गठन । (वि०) १. काठियावाड़ का। कानी । २. दृढ़ । मजबूत । ३. तंग । सँकरी। काणी दिस-(ना०) १. अपने जनपद से काठो-(वि०) १. तंग । सँकरा । २. सख्त। भिन्न दूर का जनपद । अपने चौखले से कड़ा। ३. कठोर । ४. मजबूत । दृढ़। बाहर का स्थान । २. दूर और एकान्त ५. कंजूस । कृपण । ६. मोटा । जाड़ा। जगह । अटपटी जगह । ३. वह दिशा या (न0) एक प्रकार का कठोर फोड़ा। स्थान जिसके साथ अपना कोई संबन्ध कारबंकल। न हो। काडो-(न०) १. एक गाली। २. एक अशिष्ट कारणी दीवाळी-(ना०)दीपावली का पहिला वाक् संपुट । __दिन । इस दिन द्वार के एक तरफ ही काढणो-(क्रि०) निकालना। दीपक रखा जाता है। काढो-(न०) क्वाथ । काढ़ा। कारणेठो-(न०) नुकीला दाँत । शूल दाँत । कारण-(ना०) १. सम्मान । प्रतिष्ठा । खूटो। २. सम्मान की भावना । ३. लोक-लाज। काणो-(न०)१. सुराख । छिद्र । (वि०)१. मर्यादा। ४. संकोच । ५. महत्व । ६. एक आँख वाला। काखांण । काना। मृतक के घरवालों के शोक में संवेदना २. दुर्बुद्धि । ३. जिस फल का कुछ अंश प्रकट करने को जाने की प्रथा । ७. तराजू कीड़ों ने खा लिया हो। कीट भक्षित के दोनों पलडों में समतला का प्रभाव । (फल, साक आदि।) डंडी पोर उसके एक पलड़े का एक ओर काणो गूघटो-(न०) घूघट में से देखने के झुकाव । ८. तराजू के दोनों पलड़ों को लिये एक आँख के आगे दो अंगुलियों में समतुलित करने के लिए ऊँचे उठने वाले प्रोढ़ने को लपेट कर बनाया जाने वाला पलडे में रखा जाने वाला वजन । पासंग। घंघट का नेत्राकार छिद्र । कारण-कुरब-(न०) १. मान मर्यादा। २. कात-(ना०) बड़ी कतरनी। बड़ी कैंची। प्रतिष्ठा। कातरणो-(क्रि०) १. सूत कातना। ऊन या कारणण-राण-(न०) सिंह । काननराज । रूई का धागा बनाना। कातमा । कताई काणम-(ना०) १. तकड़ी की डंडी और करना । (न०) सूत कातने का काम । पलड़े में रहने वाला मुकाव । २. दोनों कताई। पलड़ों को समतुलित करने के लिए ऊँचे कातर-(ना०) बड़ी कतरनी। (वि०) १. उठने वाले पलड़े में रखा जाने वाला कायर । २. व्याकुल । वजन । कारण । कातरियो-(न०) स्त्री के हाथ का एक काणजो-(वि०) काना । एकाक्ष । (न०) गहना । १. चिपड़ी । २. कचरा। कातरो-(न०) फसल को चौपट करने वाला कारण-मुकारण-दे० काण ६ । एक कीड़ा। कारणस-(ना०) एक औजार जिसको किसी कातळी-(मा०) १. शरीर का ढांचा । २. धातु पर रगड़ने से उसके बारीक कण शरीर की शक्ति । ३. किसी चीज का कट कर गिरते हैं। रेती। प्ररगती। लम्बा पतला और चपटा टुकड़ा । कतली। कानस। कातियो-(न०) जबड़ा । जबाड़ो । For Private and Personal Use Only
SR No.020590
Book TitleRajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
PublisherPanchshil Prakashan
Publication Year1993
Total Pages723
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size12 MB
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