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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कठठणो ( १९२) कड़करणो कठठणो (क्रि०) १. तैयार होना । २. चढ़ाई कठीरो (न०) १. कठघरा। २. काठ का के लिये तैयार होना । ३. चढ़ाई करना। हुक्का । (वि०) कहाँ का । किस जगह का। ४. जोश में आना । ५. उमड़ना। कठू-(क्रि०वि०) कहाँ से ('कठे सू' का कठड़ो-(न०) कठघरा । ___ छोटा रूप ।) कठण-(वि०) १. कठिन । मुश्किल । कठेडो-दे० कठहड़ो। २. सख्त । कड़ा। कठोर । ३. दृढ़ । कठ-(क्रि०वि०) कहाँ । किधर । मजबूत । कठक-(क्रि०वि०) १. कहीं । २. कहीं भी। कठणाई (ना०) कठिनता। ३. कहीं कहीं। ४. कहाँ तक । ५. कहीं कठपींजरो-(न०) काठ का पिंजरा। तो। कटपूतळी-(ना0) कठपुतली। काष्ठ की कठेथी-(क्रि०वि०) १. कहाँ से। कठे सू। मूत्ति । २. जिधर से भी। जहाँ कहीं से भी। कठफाड़ो-(न०) जलाने के लिये चीरी हुई कठे ही-(क्रि०वि०) १. कहीं भी। २. कहीं। लकड़ी । (वि०) जलाने के लिये लकड़ियों कठोतरी-(ना०) काठ का छिछला बर्तन । को चीरने, फाड़ने वाला। कठौती। लकड़ी की परात । कठवती-(ना०) कठौली। कटोती-दे० कठोतरी। कठसेड़ी-(वि०) जिसके थनों से दूध कठि- कठोर-(वि०) १. कठिन । सख्त । कड़ा । नता से निकले (गाय, भैंस)। ___२. निर्दय । निष्ठुर। कठहड़ो-(न०) कठहरा । कठोरी-(ना०) १. कठौती। २. कपित्थ । कठंजरो-(न०) रसोई घर में रखा रहने कैथ । वाला खाद्य पदार्थ रखने का पिंजरा। कठोळ-(न०) मूग, मोंठ प्रादि द्विदल धान्य । २. कठघरा । कठड़ो। कड़-(ना०) १. कमर । २. किनारा । तट । कठा तक-(क्रि०वि०) कहाँ तक । ३. अोर । तरफ । पक्ष । कठाताणी-(क्रि०वि०) कहाँ तक । कड़क-(ना०) १. शक्ति । बल । २. कार्यकठा तांई-- (क्रि०वि०) कहाँ तक । शक्ति । ३. गर्जन । ४. कड़ापन । ५. हड्डी, कठा थी (क्रि.वि०) कहाँ से । लकड़ी आदि टूटने का शब्द । (वि०) कठा लग-(कि०वि०) कहाँ तक । १. तेज स्वभाव का। उग्र। कठोर । कठा सू-(क्रि. वि०) कहाँ से। २. सख्त । कड़ा । कठोर । कठाँ-(क्रि०वि०) कहाँ । कड़कड़-(ना०) प्रहार की ध्वनि । कठिन-दे० कठण। कड़कड़ खाँड-(ना०) ढेलों वाली एक प्रकार कठिनाई-दे० कठणाई। की कच्ची खाँड । शक्कर । गड़गड़खांड। कठियाणी-(ना०) कठियारा की स्त्री। मुश्तीखांड। कठियारो- (न०) जंगल में से लकड़िये तोड़ कड़कड़ी-(न०) जोश या क्रोध में दांतों के कर लाने वाला और बेचने वाला व्यक्ति। किटकिटाने की क्रिया । काष्ठिक। कड़करणो-(क्रि०) १. टूट पड़ना । आक्रमण कठी-(क्रि०वि०) कहाँ । किधर । करना । २. टूटना। ३. बिजली का बहुत कठीनै-(क्रि०वि०) किस ओर । किधर को। जोर का शब्द होना। बहुत तेज प्रावाज कठीर-(न०) सिंह । कंठीर । का गर्जन होना। For Private and Personal Use Only
SR No.020590
Book TitleRajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
PublisherPanchshil Prakashan
Publication Year1993
Total Pages723
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size12 MB
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