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स्त्रगा
( ८६५ ।
स्त्रवणपीठ
रंग-१ देखो स्वरग' । २ देखो सके।
स्रबथा-क्रि०वि० सर्वथा। लगववार (दुवार, द्वार)-पु० [सं० स्वर्ग-द्वार] सूरज, सूर्य । स्रबदायक-पु० [स० सर्वदायक) कल्पवृक्ष । स्रगम-पु० जल, पानी।
सबसेव-पु० सूर्य, सूरज। स्रगलोक (लोग)-देखो 'स्वरगलोक' ।
स्रब्ब-देखो 'सरव'। लगवाट-पु० स्वर्ग का रास्ता ।
सम्बबियाप (बियापी, विद्याप, वियापी)-वि० [सं० सर्वव्यापिन] स्रगविहारी-देखो 'स्वरगविहारो' ।
जो सर्वत्र तथा सब वस्तुप्रों में व्याप्त है, जिसकी उपलब्धि स्रगसुखवा-पु० [स० स्वर्ग सुखदाः] कल्पवृक्ष ।
सर्वत्र व सब समय मानी जाती है। -पु०१ ईश्वर,परब्रह्म । नगाळ, नगाल-पु. [सं० शृगाल] (स्त्री० स्रगाळी) १ गीदड़, | २ शिव, महादेव ।
सियार । २ कायर, दरपोक व्यक्ति। ३ निर्दयी व्यक्ति । | सम्बेस-म०१ सर्व सब समस्त । देखो 'माते'। , ४ धूर्त चालाक व्यक्ति।
त्रम पु० [सं० श्रम] १ परिश्रम, मेहनत । २ दौड़-धूप, प्रयास, स्रग्गा-देखो 'स्वरग'।
प्रयत्न । ३ थकावट, थकान । ४ व्यायाम, कसरत । स्रज-पु० १ एक विश्वदेव का नाम । २ देखो 'स्रक' ।
५ अभ्यास । ६ खेद, रंज । ७ तपस्या। ८ कष्ट, तकलीफ । सजणी (बो)-क्रि० १ प्राप्त करना । २ देखो 'सरजणी' (बो)।। साहित्य में एक संचारी भाव । सरिणका-स्त्री० [सं० हरिणका] लार ।
बमकरण-पु० [सं०श्रमकण परिश्रम करने पर शरीर से निकलने स्रणी-पु० [सं०अणि] १ अंकुश । [सं०सणी] २ चन्द्रमा, चांद । वाली पसीने की बूदें। स्रणीक-पु० [सं० सगीक] १ वायु, हवा । २ भाग, अग्नि ।
समजळ (ल)-पु० [सं० श्रमजल] पसीना, स्वेद। वत, सति स्रती-पु० [सं० सृति] मार्ग, रास्ता।
स्त्रमण-पु० [सं० श्रमण] १ पाप, दोषादि से रहित साधु । स्रवणो (बो)-देखो 'सरधणो' (बौ)। .
मुनि । २ भगवान महावीर का उपनाम । ३ बौद्ध भिक्षुक । स्रद्धांजळि, स्रद्धांजळी-स्त्री० [सं० श्रद्धांजलि] १ किसी बड़े या -वि०१ परिश्रमी, मेहनती। २ तपस्या में तत्पर तपस्थी। पूज्य व्यक्ति के प्रति श्रद्धा पूर्वक कही जाने वाली बात।
३ दुष्ट, पतित । ४ पाखंडी, ढोंगी। ५ देखो 'स्रवण'। २ किसी मृत व्यक्ति की पात्मा की शांति के लिए श्रद्धा
समबिंदु-पु० [सं० श्रमबिन्दु पसीना, स्वेद। पूर्वक की जाने वाली प्रार्थना। ३ श्रद्धापूर्वक दी जाने
स्रमसीकर-पु० [सं० श्रम शीकर] श्रमबिंदु, पसीना। . वालो अंजलि.।
सम्म-देखो 'सम'। स्रद्धा-स्त्री० [सं० शद्धा] १ ईश्वर, धर्म, किसी पूज्य पुरुष के प्रति होने वाली भादर की भावना, प्रास्था । २ किसी
स्राणी-स्त्री० स्त्री, पौरत। कार्य या बात की प्रबल इच्छा, वासना । ३ गर्भवती स्त्री
सरक-पु० [सं० सरक] घोड़ा, प्रश्व । के मन की इच्छा, दोहद । ४ धनिष्ठ परिचय । ५ सम्मान,
स्रलोक (को)-१ देखो 'स्लोक' । २ देखो "सिनोको'। प्रतिष्ठा । ६ चित्त की प्रसन्नता। ७ विश्वास । वेद
स्रवंति (ती)-स्त्री० नदी, सरिता। शास्त्र और प्राप्त वाक्यों में विश्वास । ९ सूर्य को एक | लव-पु. [सं० श्रव] १ कान, कर्ण। २ झरना, सोता ।
कन्या का नाम । १० अंगिरा ऋषि की पत्नी का नाम । ३ मूत, मूत्र, पेशाब । ४ देखो 'सरव' । स्रद्धाळु, स्रद्धालु, स्त्रद्धाळू (लू)-वि० [सं० श्रद्धालु] १ बद्धा स्रवण-पु० [सं० स्रवनं] १ चुनाव, टकराव । २ पसीना, स्वेद ।
रखने वाला, श्रद्धावान । २ अभिलाषी, इच्छावान । . ३ मूत्र, पेशाब । [सं० श्रवणं] ४ कान, कर्ण । ५ गर्भपात ।
-स्त्री० कई प्रकार की अभिलाषामों वाली गर्भवती स्त्री। ६ स्तन । ७ सत्ताईश नक्षत्रों में से बाईसा नक्षत्र । स्रधा-देखो 'स्रद्धा'।
८ नवधा भक्ति में से एक । ९ माता-पिता, का भक्त एक स्रप (सप्प)-देखो 'सरप'।
पुराण प्रसिद्ध तपस्वी। सपाटी-स्त्री० चोंच,
स्रवणद्वादसो-स्त्री० [सं० श्रवणद्वादशी] भादव शुक्ला द्वादशी अपी-वि० तृप्त, संतुष्ट ।
जो श्रवण नक्षत्र में हो। स्रब-देखो 'सरव' ।
स्रवणपथ-पु० शब्द, ध्वनि का ज्ञान कराने वाली इन्द्री, कान । सबकांमधुन, सबकांमधुनि-पु. वेद ।
स्रवणपाळ (पाळि, पाळी)-स्त्री० [सं० श्रवण-पालि:] १ कान सबकारण-पु० [सं० सर्व कारण] ईश्वर, प्रभु ।
. की नोक । २ कान का एक प्राभूषण विशेष । खबजांण सब्जांणग-वि० [सं० सर्वज्ञ] सब कुछ जानने वाला। स्रवणपीठ-पु० [सं० श्रवणपुष्ठः] कान में धारण करने का सर्वज्ञ ।
प्राभूषण विशेष ।
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