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पखी
पंचक्षारगरण
पखी-पु. [सं० पक्षी] १ पक्षीराज गरुड़ । २ पक्षी। ३ बांण. का अंक । -वि० १ चार व एक । २ पांच के स्थान वाला।
पार । । एक प्रकार का ऊनी वस्त्र । ५ रहट का एक भाग। ३ हर बात में टांग अड़ाने वाला, पंचायती करने वाला । ६ पुष्प दल । ७ मांसाहारी पक्षी । ६ मक्खी, मक्षिका। --प्रग-वि० पाच अगों वाला, पंचांग ।-पु० कछुपा । पांच
५ बन्दूक के मुह पर बनी नोक । १० देखो 'पंख' । प्रग। --प्राचार-यु० प्राचार के पांच अंग (जैन) । पखोप्रो-१ देखो पंखियो' । २ देखो 'पक्षी' ।
-----इंद्री-स्त्री० पंचेन्द्रिय । पखीड़, पखोड़ो-१ देखो 'पंखो' । २ देखो 'पक्षी' ।
पचहवाद्य-देखो पंचवाद्य । पखीसी (मी)-१ देखी 'पखणी' । २ देखो 'पक्षी' ।
पचक-पु० स०] १ पाच नक्षत्रों का समूह । २ फलित ज्योतिष पखोपत (पति, पती, पत्त, पत्ति, पत्ती)-देखो 'पक्षीपत' ।
में नक्षत्रों का एक समय विशेष । ३ शकुन शास्त्र । ४ पांच पखीयो-१ देखो 'पक्षी' । २ देखो 'पंखियो ।
का समूह । पखीराव-देखो 'पक्षीराज'।
पंचकन्या--स्त्री० स०) सदा कुमारी मानी गई पाच पौराणिक पखीस-पु० स० पक्षी-ईश १ गरुड़ । २ देखो पक्षो' ।
स्त्रिया-अहल्या, कुंती, द्रौपदी, तारा व मंदोदरी । पखुडो-देखो 'पख'।
पचकपाळ-पु० स० पचकपाल] एक प्रकार का पुराडोश । पंखेवो. पंखेल, पखेरूपो, (वौ)-पु. पक्षी।
पचकमाळा-स्त्री० एक वणिक वृत्त विशेष । पखेसर-वि० [स. पक्ष-ईश्वर पखधारी, पखवाला । -पु. पचकरम-पु०स०पचकम
पचकरम-पु०[सं०पचकर्म] १ पांच प्रकार के कर्म (वैशेषिक) । १ पक्षीराज गरुड़ । २ जटायु । ३ पक्षी।
२ चिकित्सा की पांच क्रियाएँ । पंखोयो- देखो ‘पखारौ' ।
पचकळा-स्त्री० [सं० पंचकला पाच शस्त्रों का समूह । पखो-पु. १ हवा करने या गर्मी में हवा खाने का उपकरण। पंचकल्प-पु० स०] एक सूत्र का नाम । (जैन)
२ स्त्रियों की प्रोढनी के किनारे लगी तार गोटे की पचकल्याण-पृ० [सं०] एक प्रकार का अश्व । झल्लरी । ३ देखो 'पख'।
पचकवळ--पृ० [सं० पंचकवल कुत्ते प्रादि के लिये निकाले जाने पग-पु० स० उपांग १ ढोलक के पाकार का एक वाद्य ।।
वाले पांच ग्रास । २ देखो 'पंगु' । ३ देखा 'पंक'।
पचकविधि-स्त्री० म०) पंचक में मरने वाले के लिये किया पगत. पगति (ती)-देखो 'पंक्ति' । -टाळ-'पक्तिटाळ' । जाने वाला एक सस्कार विशेष । पगत्रप-पु० राजा जयचन्द्र की एक उपाधि ।
पंचकसाय -पु० स० पंचकषायपाच वृक्षों का कषाय । पंगरण-पु० सं० उपांगधरण] १ वस्त्र । २ पहनने के वस्त्र। पंचकांम-पृ० [सं०] पाच प्रकार के कामदेव । पंगराज, पंगराव-पु० [सं० पगुराज| राजा जयचन्द ।
पंचकारण--पु० [सं०] किसी कार्य की उत्पत्ति के माने गये पाच पगळ, पगळियो, पगळो-देखो 'पगुळ' ।
कारण । (जैन) पगळी-देखो 'पगुळी'।
पकिलांग (किलियांण, किल्याण)--देखो 'पचकल्याण' । पगी-स्त्री० स० पम्वी कीति. यश -वि. ग. लगदी पचकेस-स्त्री० [म. पन केश] यज्ञोपवीत संस्कार में बटक के पगु-वि० सं०] (स्त्री० पगवी, पगी) पावो से लाचार. शिर में रखी जाने वाली पांच शिखायें ।
अपग, लगड़ा । -१० १शनिश्चर । २ सूर्य के सारथी पंचकेसी-स्त्री०१ शरीर के मभी अगों पर रखे जाने वाले बाल। का एक नाम । -पह-पु० मकर राशि । मकर ।
२ इस प्रकार में रखे गये बालों वाला व्यक्ति । पगुगति-पु० एक छन्द विशेष ।
पंचकोरण--पु० [सं०] कुण्डली में पांचवा व नौवां स्थान । पगुरण, पगुरिण, पगुरिणी-देखो 'पंगरण' ।
पंचकोल-पु० [सं०] पाचक व रुचिकर पांच वस्तुएँ। पगुळ-पु० [सं० पगुल:] १ श्वेत घोड़ा । २ देखा 'पंग। पंचकोस-पु. [सं० पंचकोण] १ शरीरस्थ पांच कोश । २ पांच ३ देखा ‘पागळे'।
। कोश के क्षेत्र में बसी काशी । पगुळी-देखो 'पंगी'।
| पंचकोसी-स्त्री० [स. पंचकोशी १ काशी का एक नाम । पंगुळो, पगू-देखो पंगु ।
२ काशी की परिक्रमा । ३ प्रयाग की परिक्रमा । पंगो-वि. (स्त्री. पगी) पतला, इव ।
पंचकम-देखा 'पचकरम'। पंधरणों (बो)-देखा 'पागरणों (बी)।
पंचक्रत्य, पचक्रित्य-पु० [सं० पंचकृत्य ] ईश्वर के पांच कर्म । पच-पु० [सं०] १ग्राम पंचायत का सदस्य,जनप्रतिनिधि । रविवाद | पचक्लेस-पु० [सं०पचक्लेश] राग-द्वेषादि पांच प्रकार के क्लेश ।
क निर्णय हेतु नियुक्त व्यक्ति या व्यक्ति समूह । ३ पाच | पचनारगण-प० [सं० ) लवणादि पांच प्रकार के क्षार ।
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