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सटामरण
। ७०८ )
सटामण, सटांवरण-पु० रोटी की लोई पर लगाने का सूखा हैं। २ इस पौधे के रेशों का समूह । ३ सन की डोरी, माटा, पलोथण ।
सूतली। ४ सन का बना जाल । सटा-स्त्री० [सं० शटा] १ सिंह, सूपर तथा घोड़े की गर्दन के | सणक-स्त्री. १ सहसा मन में उत्पन्न होने वाली कोई भावना,
बाल, प्रयाल । २ साधु-संन्यासियों के शिर के बाल, जटा। उमंग । २ देखो मणंक' । ३ बालों की चोटी। ४ देखो 'छटा'।
सरकणी बो)-१ देखो'सरगकरणी'(बो)।२ देखो सिणकरणो'(ब) सटाक-क्रि० वि० शीघ्र, जल्दी।-पु० छड़ी या चाबुक से सरकार (री), सणकार (रो)-स्त्री० [देश०] १ इशारा, उत्पन्न ध्वनि, शब्द ।
संकेत । २ घोडे, बैल आदि को अभीष्ट दिशा में चलाने सटाणो (बौ)-क्रि० १ एक दूसरे को अत्यन्त पास-णस करना, के लिये, राश में दिया जाने वाला झटका । ३ बैल, घोड़े
मिलाना, जुड़ाना, सटाना । २ चिपकाना, लगाना । पादि की सांस से उत्पन्न ध्वनि ।
३ मैथुन कराना। ४ लिपटाना । ५ मारपीट करना । सणकारणौ (बौ), सणकारणो (बी)-क्रि० १ इशारा या सकेत सटीड़, सटीड़ी-पु० १ चोट, प्रहार । २ प्रहार की ध्वनि । करना । २ नाक से ध्वनि करना । (बैल पादि) ३ बंल; सटे, सटे-देखो 'साटै'।
घोड़े आदि की राश में झटका देकर अभीष्ट दिशा सटेबाज, सटेबाज, सटोरियो-वि० सट्टा करने वाला, सटोरिया। मे चलाना। सटो, सट्टो-पु० १ किसी कार्य के संबंध में दो पक्षों में किया जाने सकावणी (बी)-क्रि० सांस लेना । उसांस लेना।
वाला अनुबंध । २ एक प्रकार का मौखिक व्यापार जिसमें | सणकी-पु० एक प्रकार का वस्त्र विशेष । -वि० १ मन की वस्तु के भाव में उतार-चढ़ाव से ही हानि-लाभ होता है। सरग या मौज के अनुसार कार्य करने वाला। २ तुनक३ सौदा।
मिजाज। सट्ठ, सठ-वि० [सं० षठ] १ मूर्ख, बेबकूफ । २ पागल । सरणगार-देखो 'स्रगार'।
३ पालसी। ४ धृतं, चालाक । ५ कपटी। ६ लुनचा, सणगारज-पु० कामदेव । बदमाश । ७ दुष्ट ।-पु० १ साहित्य में एक प्रकार का सरणगारणो (बो)-देखो 'मिणगारणो' (बो)। नायक । २ वसुदेव व रोहिणी का एक पुत्र । ३ राम की सणगारहाट-स्त्री० १ शृगार का बाजार । २ शृगार प्रसाधन सेना का एक वानर। ४ श्वान, कुत्ता। ५ पंच, मध्यस्थ । की दुकान । ३ वेश्याओं का मुहल्ला।
६ कलई, रांगा । ७ निस्तब्धता, मौन, शांति। | सणणंकरणौ (बो)-क्रि० सन-सन की ध्वनि होना। सठता-स्त्री० १ धूर्तता, चालाको। २ बदमाशी, लुच्चाई। | सणण-स्त्री. १ तेज हवा की ध्वनि । २ लंबे तारों या रस्सी से
३ मूखंता । ४ पागलपन । ५ प्रालस्य ।-वि० दुःखद *। उत्पन्न ध्वनि । सठमठ-वि० कृपण, कंजूस ।।
सणणाट, सणणाटो-१ देखो 'सणसणाहट' । २ देखो सठवा-स्त्री० एक प्रकार की सोंठ।
'सन्नाटौ'। सठिक-देखो 'स्वस्तिक'।
सणगाणी (बी)-क्रि० १ ध्वनि विशेष होना। २ सनसनाना । सठियाणी (बो)-क्रि० १ साठ वर्ष की उम्र प्राप्त होना । | सरणाहट-स्त्री० सन-सन ध्वनि, सन्नाटा। २ इस उम्र के बाद मानसिक कमजोरी पाना ।
सरणपद-पु. पंजे वाले जानवर । सठो-देखो 'सेठो'।
सरगफ-स्त्री० वात विकार से उत्पन्न दर्द । सडंबर-देखो 'डंबर'।
सणमणु, सणमरणी-पु. १ रुग्ण, बीमार । २ शून्य, जड़वत । सडणी (बी)-देखो 'सड़णो' (बो)।
सरगमारण-देखो 'सनमांन' । सडदरसन-देखो 'खटदरसरण'
सणसणाणो (बी)-क्रि० ध्वनि उत्पन्न होना। सडवदन-देखो 'सड़बदन'।
सणसर-स्त्री० कानाफूसी। सडुक-पु० श्वान, कुत्ता ।
सणसूत्र-पु० [स० शणसूत्र] श्राद्ध, तर्पण प्रादि करते समय सढ़ारण-वि० सन्नद्ध, कटिबद्ध, तैयार ।
अनामिका में पहनने को कुश को पवित्री। सढ़ी, सढ़ौ (ढ्ढ़ौ)-पु. १ ऊंट । २ देखो 'सड़ो' । सणंक-वि० १ स्पष्ट, साफ । २ निश्चित । ३ बिल्कुल ।-स्त्री.
सणांइ (ई)-देखो ‘सहनाई। १ एक प्रकार की ध्वनि । २ देखो 'सणक'।
सणियो-१ देखो सीणो' । २ देखो 'सिणतरो'। सणंकणी (बी)-१देखो 'संरणकणो' (बो)। २ देखोसिणकणो' (बो)। सरगोजा-वि० स्नेही, प्रमो। सरण-पु. १ एक प्रसिद्ध पौधा जिसके रेशों से रस्सियां बनती | सणु-पु० [सं०] भारत का एक प्राचीन जनपद ।
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