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दो शब्द
कोश का द्वितीय खण्ड जिज्ञासु विद्यार्थियों के सम्मुख रखते हा हमें हर्ष मिथित अवसाद का अनुभव हो रहा है। कोशकार के जीवन-काल में ही यह खण्ड भी प्रकाश में या जाता तो हम इसे भी उनके हाथों में सौंप कर अपेक्षाकृत अधिक परितोष का अनुभव करते ।
उनकी स्वर्गस्थ प्रात्मा को प्रतिष्ठान की विनम्र श्रद्धाञ्जलि ।
निदेशक पद्मधर पाठक
भाद्रपद पूरिणमा; वि.सं. २०४४
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