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जयरा
( ४५२ )
जरघर
जयरणा-स्त्री० [सं० यत्ना] १ चेष्टा, प्रयत्न कोशिश । (जैन) माता का नाम। (जैन) १३ चौथे चक्रवर्ती की मुख्य स्त्री।
२ प्राणी की रक्षा। (जैन) ३ हिंसा का परित्याग । १४ एक प्रकार की मिठाई ।-वि० विजय दिलाने वाली। ४ दया । ५ विवेक । ६ उपयोग । (जैन)
-क्रि० वि. जब, जिस वक्त, यदा। जयत-पु० १ जयघोष, जयध्वनि । २ जय-विजय ।
जयार-सर्व० जिनका । -क्रि० वि० १ जब । २ तक, पर्यन्त । जयतसिरी-देखो 'जयसी'।
- मयार-पु० 'ज' कार 'म' कार । अपशब्द । (जैन) नयती-देखो 'जयंती'।
जयावती-स्त्री० १ एक स्कन्द मातृका । २ एक रागिनी विशेष । जयदेव -पु. गीत गोविन्द के रचयिता एक प्रसिद्ध संस्कृत कवि। जयी-पु० [सं० ययी] १ शिव । २ घोड़ा । ३ मार्ग, रास्ता। जयद्दह (दत्य, द्रथ, द्रथि, पू. द्रश्य)-पु० [सं० जयद्रथ] ४ अश्वमेध का घोड़ा। दुर्योधन का बहनोई व सिंधु देश का राजा।
जयु-पु० [सं० ययु] अश्वमेध का घोड़ा। जयध्वज-पु० [सं०] जयध्वजा, पताका, जयंती ।
जयेत-पु० [सं०] एक राग विशेष । -गोरी-स्त्री० एक संकर जयनी-स्त्री० [सं०] इंद्र की कन्या ।
रागिनी । जयनेर-पु० जयपुर नगर।
जयोड़ो-देखो 'जायोड़ो' (स्त्री० जयोड़ी) जयपत्त , जयपत्र-पु० [सं०] १ पराजित राजा द्वारा विजयी जयौ-पु० 'जय हो' का अभिवादन ।
राजा को लिखा जाने वाला पत्र । २ अश्वमेध यज्ञ के अश्व | जरंत-पु० भैंसा, महिष। के ललाट पर बंधा रहने वाला पत्र ।
जरंद-पु० १ प्रहार, चोट । २ प्रहार की ध्वनि । ३ किसी के जयपाळ-पु० [सं० जयपाल] १ जमाल गोटा । २ विष्णु । गिरने से उत्पन्न ध्वनि । ३राजा ।
जरंदी-वि० हजम करने वाला। -पु० १ एक ध्वनि विशेष । जयप्रिय-पु० [सं०] एक प्रकार की ताल ।
२ दुसाला । ३ उपयोग। जयमंगळ-पु० [सं० जयमंगल] १ विजयी राजा की सवारी का जर-स्त्री० १ चम्मचनुमा चलनी। २ धन,सम्पत्ति । ३ गर्भस्थ
हाथी। २ ताल का एक भेद । ३ शुभ रंग का एक बालक पर रहने वाली झिल्ली। ४ वृद्धावस्था। ५ सोना, घोड़ा विशेष । ४ ज्वर की एक औषधि ।
स्वर्ण। ६ लोहे का मुरचा । ७ ज्वर । जयमल्लार-पु. सम्पूर्ण जाति का एक राग ।
जरई-स्त्री० अंकुर निकले हुए धान के बीज । जयमाताजी-स्त्री० शाक्त लोगों का एक अभिवादन ।
जरक-स्त्री० १ मोच, चोट । २ खरोंच, धाव । ३ प्रहार जयमाळ (माळा)-स्त्री० [सं० जयमाला] १ विजयी राजा को | की ध्वनि । ४ स्वर्ण खण्ड । ५ देखो 'जरख'।
पहनाई जाने वाली माला । २ स्वयंबर में किसी पुरुष को जरकणी (बी)-क्रि. १ मोच पड़ना, चोट लगना । २ खरोंच
वरण करके स्त्री द्वारा पहनाई जाने वाली माला । लगना, घाव पड़ना। ३ प्रहार की ध्वनि होना । ४ गिरना। जयरामजी-स्त्री० एक अभिवादन विशेष ।।
जरकस (कसिया), जरकसी (सौ, स्स)-वि० १ स्वर्ण मंडित । जयवंत, जयवत-वि० [सं०] विजयी, जीता हुमा ।
२ स्वर्ण तारों में से युक्त । जयसंधि-पु० [सं०] पुडरीक राजा का एक मंत्री। (जैन) जरकारणौ (बी), जरकावरणौ (बी)-क्रि० १ मारना, पीटना । जयसद्द-पु० जयध्वनि ।
२ जमकर खाना । ३ प्रहार करना। जयसायर-पु० [सं० जयसागर] एक मुनि का नाम । (जैन)
जरकी-वि० १ कायर, डरपोक । २ देखो 'जरक' । जयस्तंभ-पु० [सं] विजय स्तम्भ ।
जरको (क्क)-देखो 'जरक'। जयस्री-स्त्री० [सं० जयश्री] १ विजयश्री, लक्ष्मी । २ संध्या जरख (रुख)-पु० [सं० जरक्ष] लकड़बग्घा । -बाहरणी-स्त्री. ___ समय की एक रागिनी । ३ ताल के साठ भेदों में से एक ।
डाकिनी, चुड़ल ।
जरखेज-वि० [फा०] उपजाऊ, उर्वरा । जयहाथ-पु० [सं० जयहस्त] अर्जुन । जयहार-पु० विजय माला।
जरगारखांना-पु० राजा-बादशाह या शासक का हीरे-जवाहरात, जया-स्त्री० [सं०] १ दुर्गा । २ पार्वती। ३ हरी दूब ।
प्राभूषणों का भण्डार। ४ हरीतकी, हरड़ । ५ दुर्गा की एक सहचरी। ६ ध्वजा,
जरग्ग-वि० [सं० जरत्क] १ जीर्ण, पुराना । २ देखो पताका । ७ तृतीया, अष्टमी व त्रयोदशी की तिथियां ।
'जरग्गव' । ८ माघ शुक्ला एकादशी। यमुना नदी। १० सोलह । जरगव-पु० [सं० जरगव] १ लकड़बग्घा । २ बुढा बैल । मातृकाओं में से एक । ११ भाग । १२ बारहवें तीर्थंकर की । जरघर-पु० स्वर्णकार, सुनार ।
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