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इसलिये जे भूलें टाड- राजस्थानमें हो चुकी हैं वे तो अब अमिट हैं। किन्तु जो कोई सत्य शोधक परोपकारी सज्जन उन भूलोको मुधारनी चाहें तो उन २ मूल लेखोंके नीचे प्रमाण सहित 'टिप्पणियें (फुट नोट)' दे देने से वे भूलें सुधार सकती हैं ।* अत: . 'पुष्करणे ब्राह्मणों की प्राचीनता विषयक टाड-राजस्थान की भूल सुधारने के लिये टाड-राजस्थान के समस्त प्रकाशक व अनुवादक महाशयों से सविनय निवेदन है कि उस पुस्तक की पुनरावृत्तियों में मेरी इस इस पुस्तक के अभिप्राय के सारांश को टिप्पणि रूप से यथा स्थान प्रकाशित करके मुझे कृतार्थ करें।
मैंने यह पुस्तक केवल टाड-राजस्थान की भूल और पुष्क. रणे ब्राह्मणों की प्राचीनता दिखलाने ही के उद्देश्यसे लिखी है। अतः मुख्य करके तो इन्हीं दो विषयों सम्बन्धी थोड़े ही से प्रमाणों का उल्लेख मात्र किया है। और उसीके अन्तर्गत प्रसंगवश पुष्करणे ब्राह्मणों के सदा से ब्राह्मणोचित कार्य करते आने तथा राज्य सन्मानित होने आदि के भी ऐतिहासिक वृत्तान्त संक्षेप ही से दे दिये गये हैं। किन्तु पुष्करणे ब्राह्मणों के सम्बन्ध की जोर कथाएं पुराण आदि शास्त्रों में जहां २ आई हैं वे सम्पूर्ण कथाएं तथा इस जाति के प्रारम्भ से लगाके अद्यावधि के लो___ * इस प्रकारका टाड-राजस्थान का हिन्दी अनुवाद उदयपुर के श्रीमान् पण्डित गौरीशङ्कर हीराचन्दजी ओझा द्वारा, टिप्पणियों सहित, स. म्पादन किया हुआ मासिक अङ्क रूपसे बाँकीपुरके खड़विलास प्रेससे प्रका. शित होना सन् १९०५ में प्रारम्भ हुआ था, किन्तु शोक है कि उस के थोड़े ही से अङ्क प्रकाशित होकर रह गये । यदि इसी प्रकार सारी ही 'भूलों का' संशोधन करके सम्पूर्ण ही ग्रन्थ प्रकाशित कर दिया जाये तो इधर तो लोगों को तो सच्चे इतिहासों का पता लग जाये और उधर दाड-राजस्थान जैसी उपयोगी पुस्तक का भी गौरव बना रहे ।
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