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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (कुलगुरु) मानते चले आये हैं। और श्री कृष्ण चन्द्र महाराजने अवतार धारण यदुवंशही में किया था। अतः कुल की मर्यादाके अनुसार उन्हों ने भी अपने कुलगुरु गर्गाचार्य जी के पैर पूने थे। यदुवंशियों की राज्य गद्दी द्वारिका में थी और उनका राज्य उसके आसपासके देशों में गुजरात, कच्छ, सिन्ध, पञ्जाव और मारवाड़ तक फैला हुआ था। इसी लिये उनके पुरोहित (कुलगुरु) पुष्करणे ब्राह्मण भी इन्हीं देशों में ही विशेष करके वसते हैं। श्री कृष्ण महाराजसे १२ पीढ़ो पीछे 'गजबाहु नामक य. दुवंशी राजा हुये उन्होंने खुरासान में जाके अपने नामपर 'ग. जनी' नगर विक्रम संवत् से २७३६ वर्ष पहिले ( अर्थात् उस समय जो युधिष्ठिर महाराजका संवत् चलता था, उसके संवत् ३०८ में) बसाया था जिसके प्रमाणका एक दोहा तवारीख़ नै. सलमेर के पृष्ठ १० वें की पंक्ति १ में यों लिखा है:तीन सत आठशक धर्म, वैशाषे सित तीज। रवि रोहिणि गज बाहुने, गजनी रची नवीन ॥ तभीसे खुरासानमें भी यदुवंशीयों का राज्य समय २ पर रहता आया है। और उनोंके पुरोहित पुष्करणं ब्राह्मणभी उ. नहींके साथ २ खुरासान में गये थे तभीसे पुष्करणे ब्राह्मणों का खुरासानमें जाना आना जारी है इस समयभी जैसलमेर आदि के पुष्करणे ब्राह्मण खुरासानमें-गजनी, कावुल, खुलम, कन्धार, हेरात, बल्ख, बुखारा, समरकन्द, यारकन्द आदि कई स्थानों में विद्यमान है और इनके पूर्वजोंके स्थापित किये हुये देवस्थान (जिन्हे अब 'द्वार।' कहते हैं ) कई पीढ़ियों से चले आते हैं। . For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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