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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर कुछ लोग इम नागभट ही के 'नाहरराव' होने का अनुमान करते हैं । किन्तु उनका यह अनुपान करना यथार्थ में ठीक प्र. तीत नहीं होता है क्योंकि प्रथम तो उक्त शिला लेख में नागभट की राजधानी 'मेड़ता' लिखी है, किन्तु पुष्कर खुदवाने वाले नाहरराव को राजधानी 'मण्डोर' थी । दूसरे शिला लेख में नागभट का उपरोक्त अन्य इतिहास लिखा होने पर भी 'पुष्कर का ता. लाब खुदवाने' आदिका कुछ भी वृत्तान्त नहीं लिखा है, किन्तु मण्डोर के नाहरराव का 'पुष्करका तालाब खुदवाना' सर्वत्र ही प्रसिद्ध है । फिर मेड़ते के राजा नागभट क्यों कर पुष्कर का तालाब खुदवानेवाले नाहरराव हो सकते हैं ? फिर भी यदि नाग भट ही का अपभ्रंश नाहरराव मान लें तौभी यह तो कोई.आरश्यक नहीं है कि उन्हें पुष्कर खुदवाने वालेभी मान लें । क्यों कि एकही नामके कई राजा एकही कुल में हो सकते हैं जैसे: जोधपुर के राठौड़ वंशमें महाराजा प्रथम जसवन्तसिंहजी सं० १६९५ में हुयेथे और उनसे ९ पीढ़ी पीछे सं० १९२९ में उसी नामके दूसरे महाराजा फिर हो गये । इसी प्रकार जयपुर के कछवाहा वंशमें जयसिंहजी नामके ३ और रामसिंहजी नामके २ महाराजा हुयेथे । इनमें प्रथम रामसिंहजी सं० १७२४ में हुये थे उनके पिताका नाम जयसिंह जो था । इनसे ९ पीढ़ी पीछे फिर दूसरे रामसिंहनी सं० १८९२ में हुये । उनके भी पिताका नाम जयसिंहजीही था । सो जबकि एकही नामके पिनाओं के एकही नामके पुत्र और एकही रियासत के स्वामी होने पर. भी दोनों जयसिंहजी और दोनों रामसिंहजी एक नहीं थे, जो एक ही वंशम जुदे २ परगनोंके राजा और जुदे २ नामों के पिताओं के एकही नामके पुत्र हो जाने मात्र ही से क्या कभी एकही कार्य For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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