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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गया था, अपना पोलपाट बारहट बना के चारणों की जातिमें मिला दिया। तब से देवायतजी के अन्य ३ बेटों के वंशवाले तो पुष्करणों में भाटी राजपूतों के पुरोहित कहलाते हैं और समस्त भाटी राजपूत उनको अपना कुलगुरु मानते हैं । इतनाही नहीं किन्तु जैसलमेर के राज्य में 'जोइजत' व 'मुसाहिब' हर ओहदों पर रहते हैं, और चौथे पुत्र रत्नू के चारण हो जाने से उसकी स. न्तान अब तक 'रत्न चारण' कहलाती है। इसी प्रकार पुष्करणे ब्राह्मण पुरोहित रतनू का भाटी देव. राज को अपना भाई कह कर उसके साथ भोजन करके शत्रुओंसे बचाने का सम्पूर्ण वृत्तान्त रिपोर्ट मर्दुम शुभारी राज्य मारवाड़ बाबत् सन् १८९१ ई०, के भाग तीसरे के पृष्ठ १८३ में भी लिखा है। विचार का स्थल है कि यदि पुष्करणे ब्राह्मणों की उत्पत्ति पुष्कर खोदने वाले शूद्र ओडों (बेलदारों) से ही हुई होती तो एक यदुवंशी राजपूत राजा के प्राण बचाने के लिये, आपत्काल के समय, एकान्त जङ्गल में, उस के साथ, केवल एक ही वार भोजन कर लेने पात्रही से स्वयं देवायतजीको अपने प्राण प्यारे पुत्र रत्न को सदा के लिये जाति से अलग करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। बहुत होता तो उचित प्रायश्चित कराके उसे श्रुद्ध कर लेते । परन्तु धर्म शास्त्र को मर्यादानुसार एक तो ह. त्यारा ( मनुष्य मारनेवाला) और दूसरा नालभ्रष्ट (किसी अन्य जाति वाले के साथ भोजन करने वा मद्य मांस आदि अभक्ष्य पदार्थ खाने वाला ) इन को जाति से बाहर कर देने का नियम पुष्करणे ब्राह्मणों में भी परम्परा से चला आता है इसी लिये For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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