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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ लोग कोकन* तीर्थ के नामसे पुकारते थे । दैवात् एक महात्मा इस नगर में आये और १२ वर्ष तक तपस्या करते रहे । एक दिन चेले के मस्तक में घाव देख के बहुत दुःखित हुये । यद्यपि चेलेने इस के भेद को प्रगट करना उचित तो नहीं समझा, परन्तु न. म्रता पूर्वक प्रार्थना की कि यहां की सारी प्रजा जैनी है और राजा भी वही धर्म रखता है, अन्य मत वालों को दान नहीं देते। इस कारण मैंने अति कठिनता से अपना निर्वाह किया और लकड़ी बेचने से सिर पर घाव हो गया। इस से वे महात्मा जैनियों पर बहुत क्रोधित हुये यहां तक कि उनकी दुराशीष से व परमात्माकी इच्छासे पवनका वेग रेत संयुक्त ऐसा आया कि यह बड़ा नगर पल भरमें नष्ट हो गया। कहते हैं नगर नष्ट हो जाने के पीछे एक बहुत बड़े समय तक यह स्थान बिलकुल उजड़ रहा और जंगल की तरह हो गया। राठोड़ों से पहिले पड़िहार राजपूत मरुस्थलके राजा थे। उ. नमेंसे नाहरराव, राजा मण्डोर, को शिकार खेलने के समय एक श्वेत शूकर दृष्टि गोचर हुआ । राजाने लश्कर से जुदा हो के उसका यहां तक पीछा किया कि वह पुष्कर के जङ्गल में आ निकला । शूकर तो दृष्टिसे छिप गया और राजा सूरजकी गरमी और दौड़ भाग के परिश्रमसे थकके और प्यासा हो के घोडेसे उत्तर पड़ा, बहुत घबराया और पानी तलाश करने लगा। अचानक जङ्गलमें एक स्थानपर थोड़ासा पानी दृष्टि में आया । राजाने ऐसे समयमें इस पानीको अपना अच्छा भाग्य समझके * कमल का नाम 'कोकनद' भी होने से पुराणों में पुष्करका दूसरा नाम 'कोकामुख' तीर्थ भी लिखा है । इसी नाम के आधार पर जैनियोने इसका नाम 'कोकन' तीर्थ रख लिया था। For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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