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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की विरत ( वृत्ति - पुरोहिताई ) चोहटिये जोशियों की चली आती है । इससे साबित होता है कि पुष्करणे ब्राह्मण नाहरराव + क्या देवराज भाटी के भी पहिले से हैं । " इस के उपरान्त पुष्करजी की उत्पत्ति आदि का इतिहास लिखते समय टाड राजस्थान व अजमेर की तवारीख़ आदि में जहाँ पुष्कर का तालाब खुदवाने आदि नाहरराव पड़िहार का आदिसे अन्त तक का सम्पूर्ण वृत्तान्त लिखा है वहां पुष्करणे ब्राह्मणों की उत्पत्ति की बात भी लिखे बिना नहीं रहते । जब कि अजमेर की तवारीख़ ने पुष्करजी के पण्डों तक का पूर्ण - तान्त लिखा है तो फिर पुष्करणे ब्राह्मणों का वृत्तान्त क्यों नहीं लिखती और टाट साहिब को तो अपनी कहानी की पुष्टि के लिये इस स्थान पर अवश्य लिखनी चाहिये ही थी । परन्तु पुष्करणे ब्राह्मणों की पुष्करजी पर उत्पत्ति होना तो दर किनार रहा किन्तु इस जातिका पुष्करजी पर कभी निवास भी नहीं हुआ था । तो फिर पुष्करजी के इतिहास में इनकी उत्पत्ति आ दिका प्रमाण कहांसे मिळता ? और बिना प्रमाण मिले क्यों कर कोई लिख सकताथा ? यदि कुछ भी प्रमाण मिळा होता तोपुष्करजी के इतिहास में इनका वृत्तान्त लिखे बिना कभी नहीं रहते । पुष्कर जी के इतिहास से निश्चय होता है कि जब नाहर + नाहर राव पड़िहार का सं० १२०६ में विद्यमान होना टाड राअस्थान के भाग १ के अध्याय ५ वें में माना है । और देवराज भाटी सं० ८९२ में जन्मे थे यह बात भी टाड राजस्थान के भाग २ अध्याय २ में मानी है । अर्थात् पुष्कर खुदवाने वाले नाहरराव पड़िहार से ३०० वर्ष पहिले देवराज भाटी हुये हैं उनके समय में पुष्करणे ब्राह्मण विद्यमान थे। For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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