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अर्हत्तम परिज्ञाने त्वं प्रमाणमिहासि नः॥
इस प्रकार गौतम की प्रशंसा होने पर कई एक ऋषियों ने कहा कि हे नारायण :, है सुर श्रेष्ट !, हे शंख चक्र गदाधरा !, हे पूज्य ज्ञानवाले ! प्रभु ! इस विषय में हममें आपही प्रमाण हैं। अतः जैसी इच्छा आप को हो वैसाही करें।
वसिष्ठ उवाच । इत्येवं हि सुविपेन्द्रैः स्तूयमाने हि गौतमे। ऊचुरीायुताः केचित् सैन्धवारण्यवासिनः ॥
ब्राह्मणों के इस प्रकार गौतम की स्तुति करने पर सैन्धवारण्य के रहनेवाले कितनेक ईाल ब्राह्मण इस वातका विरोध करते हुये बोले कि
सैन्धवारण्यवासिनः ब्राह्मणा ऊचुः । भो भो गौतम केनासि श्रेष्ठो ऽस्माकं गुणेन वै। ताहि यदि देवेषु प्रावीण्यमवलम्बसे॥
हे गौतम ! तुम किस गुणसे हममें अधिक श्रेष्ठ हो ? सो कहो । जो ब्राह्मणों में श्रेष्ठ गिने जाना चाहते हो तो कुछ प्रमाण दो। सर्वे तपस्विनो विप्राः सर्वे तीर्थनिवासिनः । सर्वे पूज्यतमा लोके ब्राह्मणा भूमिदेवताः ॥ तेषां पृथक् पृथक् पूजा कार्या नित्यं सुरेश्वर । एकस्मिन् गौतमे पूज्ये पतिभेदो भविष्यति ॥ तस्मादेकैकशः पूज्या ब्राह्मणाः पुरुषोत्तम ।
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