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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थान२ में जाति सभाओंको आवश्यकता। आप जानते हैं कि इस समय जिस प्रकार किसी उद्देश्यसे सभा सोसाइटियें बनाई जाती हैं उसी प्रकार पूर्व काल में जातियें बनाई गई थीं। अतः अन्यान्य जातियों की भाँति ब्राह्मणोंमें पुष्करणे ब्राह्मणों की जाति भी माचीन काल की एक सभा है अर्थात् पुष्करगे ब्राह्मण मात्र तो उसके सभासद् और जातिमें जो पञ्च, चौधरी, चोहटिया आदि हैं वे उसके मुख्य सभासद हैं । इस जाति मर्यादाकी ऐक्यता से बे परस्पर सहानुभूति रखते थे जिससे इस जातिकी अनेक शुभकामनाएं पूर्ण होती थीं। परन्तु इस समय कितनेक लोगों के परस्परकी ईर्षा, द्वेष, अभि. मान, आदिसे एक दूसरे के विरुद्ध मिथ्या पक्षपात करने लग - जानसे उनकी पञ्चायतें प्रायः शिथिल हो गई ( ढीली पड़ गई) हैं जिस से इस जातिकी जो हानि हो रही है वह किसी बुद्धिमान्से छिपी हुई नहीं है । अतः इस हानि को रोकने के लिये उन पञ्चायतों को पोछो दृढ़ (मज़बूत ) बनाने के निमित्त समस्त पुष्करणों को चाहिये कि इस जाति का जहां २ निवास स्थान है वहां २ 'पुष्टिकर हितैषिणी' सभा स्थापित कर दें (जैसी कि पहिले जोधपुर में स्थापित किई गई थी)। और न्यात में जो सदासे पञ्च माने जाते हैं उन्हीं को तो सभाके मुख्य सभासद तथा सभाकी उन्नति चाहने वालों को सहायक सभासद् बनावें और पुष्करणे मात्र तो सदाभे इस सभाके सभासद बने ही हुये हैं। इसके उपरान्त जहां २ न्यात के घर अधिक हो वहां२ प्र. त्येक खाँप २ को भी एकर शाखा सभा बना ( जैसी कि जो धपुरमें कल्लोंने 'सिद्भुकुल भूषण' नामकी शाखा सभा बनाई है। For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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