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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० छोड़कर आप अकेले आगे चले जाना नहीं चाहते हैं। यहां तक कि कोई विशेष अशक्त हो जावे तो उसे भी अपने साथ निवाह लेते हैं | परन्तु यदि उस संघ के प्रधान सर्व साधारण को बोचही में छोड़कर आप अकेले अपने में सामर्थ्य होनेसे आगे चले जावें तो उस संघर्षे बड़ी खलबली मच जावे और उन संगवालोंको भी लाचारन उनके पीछे २ भागना पड़े । परन्तु सर्व साधारण में घनाढ्यों कीसी सामर्थ्य न रहने के कारण बहुत भागने पर भी अन्त तक वे उनके बराबर नहीं पहुँच सकते जिमसे बेन तौ इधर के रहते हैं और न उधर के । उस समय संघके प्रधानों की तो महान् अपकीर्ति और सर्व साधारण को अत्यन्त्य क्लेश भोगना पड़ता है । ठीक वैमी ही दशा जाति समूहों की भी है। क्यों कि जाति समूह भी तो एक प्रकारसे संसाररूपी महायात्रा का संघ है; और जाति में के धनाढ्य लोग उसके प्रधान ( आगीवान ) हैं; और जाति मर्यादाकी सुरीतियें उस संघ में के सर्व साधारण तथा अशक्त लोगों के निर्वाह होनेकी नियमावली है. । पहिले के धनाढ्यों में इस समय के घनाढ्यों की अपेक्षा अधिक सामर्थ्य रहने पर भी वे लोग सर्व साधारण के संघमें रहने ही में अपना गौरव (बडप्पन) समझने थे। परन्तु महान् व अत्यन्त्य खेद है कि आजकल के कितनेक अविचारवान धनाढ्य लोग आगे पोछे का कुछ भी सोच न करके केवल अपनो श्रीमन्ताईकी नकली शोभा दिखलाने और फ़ज़ूल ख़र्ची करने वालों मे थोथा नाम पाने की आशा में सर्व साधारण का संघ छोड़कर आप आगे बढ़ जाते हैं; अर्थात् विवाह आदि के समय जाति मर्यादाकी मा चीन सुरीतियों का उल्लंघन कर देते हैं। और सर्व साधारण में For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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