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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०१ राजा उदयसिंहजी के गुरू व मुसाहिबों में से थे। उनके पास घन तो बहुत था, किन्तु पुत्र नहीं था । इसलिये अपने बड़े भाई गाँगाजी के पुत्र गिरिधरजीको दत्तक (गोद) ले लिया । किन्तु फिर किसी महात्माकी आशिष्से तापालीके एक औरस भी पुत्र उत्पन्न हो गया । उनका नाम नाथाजी रखा । जब तापाजीका अन्त समय समीप आया तो उन्होंने गिरिधरजको बुलाके कहा कि तुम दोनों भाई मेरे सामने अपनी सम्पत्ति बाँटको | गिरिधरजीने कहा कि 'आपकी कृपासे मेरे किसी वातकी कमी नहीं है अत: मैं बंट लेना नहीं चाहता । और आपका सम्पूर्ण धन मैं नाथा के लिये छोड़ता हूँ ऐसा कदके अपनी ओरसे एक फारिगख़ती छोटे भाई के नामपर लिखदी । तब तापाजीने अपने छोटे पुत्र नाथाजीको बुलाके गिरिधरजीका सबै वृत्तान्त कहा। नाथाजीने अपने बड़े भाईकी ऐसी उदारता देखके अपने हाथमें जल लेके पिताका सर्वस्व अर्थात् धनादि सम्पूर्ण पदार्थ पिता के नामपर श्रीकृष्णार्पण करनेका सङ्कल्प कर दिया । उस समय नाथाजीकी • अवस्था केवल ९ वा १० ही वर्ष की थी। फिर उस धनमें से अनुमान २,००,००० दो लाख रुपये लगाके पिता नापा जी के नामपर सं० १६८६ में 'तापी' नामक एक बहुत बड़ी बावड़ी बनवा दी, जो जोधपुरकी वस्तीके बहुतही काम आती है । और शेष धन से खेतीके योग्य बहुतसी भूमि मोल लेके ब्राह्मणों को दे दी । वह आजतक है और 'व्यासकी सुरह' कहलाती है । पिताका लाखों रुपये का धन धर्मार्थ लगा देना और उसमेंसे अपने लिये एक कौडीभी नहीं रखना एक ९ । १० वर्षके वालकके लिये दान करनेमें कितनी उदारता है? फिर नाथाजीने स्वयं भी लाखों ही रुपये पैदा किये और ऐसेही ऐसे उपकारी कामों में लगाते रहे। • For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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