________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सीने भी नहीं किया। ऐसे कई दिन बीत जानेसे राजाको दुःखित होता सुनके जोधपुर के चण्डू कुलोत्पन्न चण्डवाणी जोशी ‘कन्हीरामजी' नाम एक पुष्करणे ब्राह्मणने, जिन्होंने पुष्करजी पर गायत्री मन्त्रके २४ । २४ लाख जपके दो पुरश्चरण समाप्त करके जो तीसरा पुरश्चरण प्रारम्भ कियाथा उसे छोड़के, ब्राह्मणोंकी पुष्टिके लिये जयपुर जाके राजासे कहा कि "हे महाराजाधिराज आप स्वयं जानते हैं कि राजाओंका दान लेना कोई खेलकी बात नहीं हैं । क्योंकि जितना पाप १० कसाइयों को होता है उतना तो १ कुम्भकारको लगता है, जितना १० कुम्भकारों को होता है उतना १ तेलीको लगता है,जितना १० तेलियोंको होता है उतना १ वेश्याको लगता है और जितना १० वेश्याओं को होता है उतना एक राजाको लगता है। अर्थात् १०००० कसाइयों के तुल्य पाप १ राजा को लगता है। अतः विना साम
र्थ्य के राजाओंका दान (प्रतिग्रह) लेनेवाला २१ प्रकारके घोर नरकों में जाता है । निदान राजाओंका दान विना सामर्थ्य के तो कोई ले सकता ही नहीं किन्तु सामर्थ्यवान्को भी अपने ब्रह्म तेजकी रक्षाके लिये बचना पड़ता है। इसमें मनुस्मृति के चतुर्थ अध्यायका यह प्रमाण है:दशसूनासमं चक्रं दशचक्रसमो ध्वजः । दशध्वजसमो वेशो दशवेशसमो नृपः ॥ ८५ ॥ दशसूनासहस्राणि यो वाहयति सौनिकः । तेन तुल्यः स्मृतो राजा घोरस्तस्य प्रतिग्रहः ॥८६॥ यो राज्ञः प्रतिगृह्णाति लुब्धस्योच्छास्त्रवर्तिनः ।
For Private And Personal Use Only