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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किये हुये पापोंके भागी हो जाते हैं । इस लिये भोजनभी शुद्ध वृत्तिसे जीविका करनेवालों ही का लेना चाहिये । अतः मनु स्मृति में लिखा है कि सावित्रीमात्रसारोऽपि वरं विप्रः सुयन्त्रितः । नायन्त्रितस्त्रिवेदोऽपि सर्वाशी सर्वविक्रयी ॥ मनु० अ० २ श्लो० ११८ जो ब्राह्मण वेदविक्रय (पैसे ठहराके वेदका पाठ) करनेवाला और हर किसी मनुष्यका दिया हुआ अन्न खानेवाला हो वह यदि चारों वेदोंका वक्ता हो तो भी ब्राह्मणों में श्रेष्ठ नहीं गिना जाता,किन्तु जो ब्राह्मण वेद विक्रय करने और हरएकका अन्न खाने रूपी दुष्कर्मसे बचा हुआ हो तो वह ब्राह्मण केवल गायत्री मन्त्र ही का जाननेवाला हो तो भी ब्राह्मणों में श्रेष्ठ गिना जाता है। इन्हीं पूर्वोक्त धर्म शास्त्रोंकी आज्ञानुसार पुष्करणे ब्राह्मणों की प्रायः समग्र जाति ही प्रतिग्रह (दान) लेने और वेदवि. क्रय करनेरूपी असत्कर्मों से बची हुई है। यहां तक कि जोधपुर आदि के तो पुष्करणे ब्राह्मण 'ब्रह्मभोज' भी केवळ एक अपने महाराजा के अतिरिक्त अपने अन्य यजमानों तकका भी नहीं लेते हैं। हां सिन्ध, कच्छ आदिके प्रायः पुष्करणे ब्राह्मण अपनी जीविका ब्राह्मण वृत्ति से करते हैं किन्तु वे भी बहुधा अपने यजमानों हीसे करते हैं न कि सर्व लोगों से ।* * प्रतिग्रह (दान) लेनेवाले ब्राह्मणों के घर का अन्नजल लेने में प्रायः लोग संकोच करते हैं किन्तु पुष्करणे ब्राह्मणों में प्रतिग्रह (दान) लेने की प्रथा न होने से इनके यहां का अन्नजल सर्व साधारण से लगा के महाराजा भी प्रसन्नतापूर्वक के लेते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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