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या तो 'लक्ष भोज' नामसे, विष्णुयज्ञ अशेषभोज' वा 'सहसभोज', नामसे और लघुविष्णु यज्ञ 'पञ्चपर्ची' नामसे पुष्करणों में प्रसिद्ध है।
ऐसे यज्ञोंके समय ब्राह्मण भोजन कराने के लिये अपनी जातिके सम्पूर्ण ब्राह्मणों को देश देशान्तरों में निमन्त्रण भेजकर दूर२ से बुलाक एकत्र करतेथे । उन एकत्र हुये सहस्रों ब्राह्मणों को लक्ष भोजके समय तो २१ दिनों तक, अशेषभोज वा सहस्रभोज के समय ७ दिनों तक और पञ्चपके समय ५ दिनोंतक उत्तमोत्तम भोजन करानेके पश्चात् प्रत्येक ब्राह्मणको लक्षभोज में तो वस्त्र तथा पात्र देनेके उपरान्त १)) १)) सुवर्ण मुद्रा (सो. नेकी मोहर), अशेषभोज वा सहस्र भोज २)२) वा ४) ४) रुपये, और पञ्चपर्वी में १) १) वा २) २) रुपये दक्षिणा देनेके उपरान्त आने जानेका मार्ग व्यय देके बड़े सत्कारके साथ पीछा विदा करते थे। इस समयकी अपेक्षा पूर्वकाळमें धान्य, घृत, गुड़, खाँड़ आदि सम्पूर्ण वस्तुएं बहुत ही सस्ते भावसे मिलती थीं तो भी इन यज्ञोंमें लाखों रुपये लग जाते थे।
पहिले पुष्करणे ब्राह्मण सिन्ध देशके 'अरोड़ नामक नगर में अधिक वसते थे। परन्तु विक्रम संवत् के प्रारम्भसे२७०वर्ष पहिले यूनानके बादशाह 'सिकन्दर'ने इस देशापर चढ़ाई की तो 'अरोड़' नगरके राज्यको नष्ट कर दिया । उस अयाचारके समय बहुतसे पुष्करणे ब्राह्मणभी मारे गये और जो कुछ शेष बचे वे मारवाड़ की ओर भाग आये जिन की सन्तान लुद्रवा आदि नगरों में बस गई । फिर लुद्रवेके भाटी राजा जैसळजीने सं. १२१२ में अपने नामपर जैसलमेरका नगर वमाया तब पुष्करणे ब्राह्मणोंको भी जैसलमेरमें ला बसाये । जैसलमेर में वसने से प
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