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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है! चौथे टाड साहब अंग्रेज सरकारकी ओरसे कई वर्षों तक राजपूतानेके बड़े साहब (चीफ कमिश्नर वा एजण्ट गवर्नर जनरल) के पदपर रहे थे तभी उन्हें यह पुस्तक लिखनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था । उस समय भी राजपूतानेकी कई रियासतों में राज्य के बड़े ओहदों पर भी पुकरणे ब्राह्मण विद्यमान थे ( जैसे जैसलमेर में दीवान व मुसाहिब पुष्करणे ब्राह्मण ईश्वरलालजी आचार्य व जोधपुर में जोशी प्रभुलालजी मुसाहिब ) और उनमें कइयोंसे आपको मिलने का भी काम पड़ा है। तोभी आप मारवाड़के ब्राह्मणों में एक ऐसी प्रसिद्ध, प्रधान व प्रतिष्ठित जाति के विषयमें इतने अन जान ही बने रहें तो यह क्या ऐसे इति. हास लेखकों के लिये कम भूलकी बात है ? अतः इस जातिके विषयमें टाड साहबकी इस प्रकारकी प्रत्यक्ष अनभिज्ञता देखकर भी क्या यह निश्चय नहीं होता कि इनकी उत्पत्ति की मिथ्या 'अजब कहानी' भी इसी प्रकार की भूलसे नहीं लिखी गई ? पुष्करणे ब्राह्मणों के गोत्र प्रवर । हम प्रथम लिख आये हैं कि पुष्करणे ब्राह्मणों की जाति सिन्ध देश में बनी है । उस समय पूर्वोक्त १२८ गोत्रों में से कई गोत्रके ब्राह्मणों के सम्मिलित होने से यह जाति बनी थी जैसे कि उतथ्य,भारद्वाज,शाण्डिल्य,गौतम, उपमन्यु, कपिल,गविष्टर,पाराशर, कश्यप, हरितस, शुकनस, वत्स, कौशिक, और मुगळ इ. त्यादि गोत्र पुष्करणे ब्राह्मणों में हैं। इस जातिके अन्तर्गत जो ब्राह्मण एकत्र हुये हैं वे देश, ग्राम, गण कर्म अथवा राजा आदिकी दी हुई उपाधियों के अनुसार उपनामोंसे पहिचाने जाते हैं, जिन्हें जाति के बीच में आठ नाम, For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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