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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुविकल्पों के कारण जीव पापी बनता है। सावधान! सावधान! सावधान! इसी प्रकार जो रातदिन धन, स्त्री या भोग सामग्री की प्राप्ति के लिए मन से बुरी-बुरी कुलांचे भरता रहता हैं, उसके पल्ले तो एक भी पदार्थ का भोग नहीं पड़ता, फिर भी वह केवल मन के बुरे विचारों के कारण नरक का मेहमान बन जाता हैं। उसकी यह विडम्बना भोजन किये बिना ही हुए अजीर्ण के समान है। विचारों से ही कर्मबंध करके दुर्गति के मेहमान मत बनों। विराग से राग की और योग से भोग की ओर, उपासना से वासना की ओर तथा शील से अशील की और प्रवृत्ति करते हुए मन को जान कर कहना पड़ता है कि मन का स्वभाव गधे और भैंस के समान ही है। गधे को अच्छी तरह से नहलाओं धुलाओ परन्तु ज्यों ही वह राख को देखता है तो वह उसमें लोटने लगता है। इसी प्रकार मन को संतों की पवित्र वाणी में नहलाओं, प्रभु की भक्ति में नहलाओं तो भी वह ज्यों ही वासना रूपी राख को देखता है, उसमें लोटने लगता है। भैंस को कितना ही साफ स्वच्छ रखो परन्तु ज्योंहि वह किचड़युक्त पानी को देखती है तो उसमें बैठ जाती है। इसी प्रकार मन को सामायिक प्रतिक्रमण की पवित्र क्रिया में नहलाओं तो भी वह ज्योंही कषायरूपी कीचड़ को देखती है, तो उसमें बैठ जाती है। मन की ऐसी दुर्घवृत्तियों के कारण आत्मा का अधःपतन होता है। वासनाओं, कषायों की राख और किचड़ का मटमैलापन मन पर ऐसे संस्कार बना देता है कि उपदेश रूप जल भी उसे धो नहीं पाते, इसका सीधा तथा प्रत्यक्ष प्रभाव आत्मा की स्थिति पर पड़ता है, इसीलिए मन को ऐसी कुप्रवृत्तियों में युक्त मत होने दो। आसमान में सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र व तारे चलते रहते हैं किन्तु आसमान पर इनका दाग नहीं रहता। आसमान में पानी से भरे बादल छा जाते हैं, वहाँ से बरसते भी हैं किन्तु आसमान उनके जल से कभी भीगता नहीं। आसमान में इतने सारे पक्षी उडते रहते है किन्तु उनके पंखों का एक भी निशान आसमान पर नहीं रहता। पानी में हजारों मछलियाँ एवं अन्य जलचर घूमते रहते है किन्तु जल में उनके पाँवों के निशान नहीं रहते। वैसे ही मन में अनेक प्रकार के विकल्प आएँ–जाएँ किन्तु उनका कोई दाग न रहे । राग और -1996 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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