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पेड़े
जाहेरात करने लगे। आने वाले कल से दूध मुफ्त, दहीं मुफ्त, घी मुफ्त, मुफ्त, बरफी मुफ्त, मुफ्त..... मुफ्त....... मुफ्त..... यह मुफ्त शब्द सुनते ही गाँव के लोग इकट्ठे हो गये (तमाशाने तेडु न होय) धर्म के लिए जाहेरात करवानी पड़ती है। यहाँ इस जाहेरात को सुनकर सभी खुश-खुश हो गए और सोचने लगे। कोई कहने लगा कल मैं दूध पीऊंगा । कोई कहता है मैं दहीं खाऊँगा। कोई कहता है मैं बरफी खाँऊगा। मुफ्त में मिलेगा तो खाने के लिए कौन मना करेगा। तब उन युवानों ने कहा कि सुनो। आनेवाले कल इस गाँव में पान सौ से ज्यादा गायें, तीन सौ भेंसें और सौ बकरियों का धन आएगा। उनको तुम चारा डालना, गोबर उठाना, उबला बनाना, यह सब-कुछ करने का फिर दूध, दही, घी, पेड़े, बरफी सब मुफ्त में । यह सुनकर वहाँ जो खड़े थे सभी रवाना हो गए।
माल खाना है परन्तु मेहनत नहीं करनी है। वैसे सुख पाना है, सद्गति पानी है परन्तु आत्मदमन अर्थात् विषय- कषाय इन्द्रियों का मनोनिग्रह करना नहीं है। निम्न प्रकार की प्रवत्ति से आत्मदमन होता है।
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(1) किसी भी प्राणी के द्रव्य प्राणों का नाश नहीं करने से आत्मदमन / नियन्त्रण होता है। (2) अप्रिय - अहितकर और झूठा वचन नहीं बोलने से आत्मदमन होता है। ( 3 ) मालिक की बिना अनुमति के किसी भी वस्तु को नहीं लेने से आत्मदमन होता है । (4) काम - भोग की प्रवृत्ति नहीं करने से आत्मदमन होता है। (5) आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह नहीं करने से और उन पर आशक्ति नहीं रखे से आत्मदमन होता है । (6) किसी पर क्रोध नहीं करने से आत्मदमन होता है। (7) स्वामित्व प्राप्त किसी भी वस्तु का अभिमान नहीं करने से आत्मदमन होता है । (8) किसी भी व्यक्ति के साथ माया, कपट, आचरण नहीं करने से आत्मदमन होता है। (9) धन-वैभवादि की लालसा नहीं करने से आत्मदमन होता है। (10) किसी भी व्यक्ति अथवा वस्तु पर मोह नहीं करने से आत्मदमन होता है । ( 11 ) किसी व्यक्ति से द्वेष - घृणा नहीं करने से आत्मनियंत्रण होता है । (12) किसी भी
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