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जब वह चला तो लोग देखते रह गये। दिन तो वर्षा के नहीं थे, लेकिन उसके पाँव घुटने तक कीचड़ से भरे थे। वह कीचड़ से भरा था, वैसा ही उन कीमती कालीनों पर चलता रहा। राजा और सब को हुआ कि कीचड़ से कैसे भर गया। महल की सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त राजा से नहीं रहा गया। उसने पूछा कि मित्र! क्या मैं पूर्छ कि यह पाँव इतने कीचड़ से कैसे भर गये? फकीर ने कहा कि अगर तुम कालीन बिछाकर रास्तों पर अपना वैभव दिखा सकते हो तो हम फकीर है। हम उस पर कीचड़ भरे पाँव चलकर अपनी फकीरी बतला सकते है। बादशाह ने कहा मैं तो समझा था कि हममें और तुम में कोई फर्क पड गया है, लेकिन हम पुराने मित्र है और कोई फर्क नहीं पड़ा तुम भी वहीं हो जहाँ मैं हूँ। तुमने छोड़कर भी उसी दम्भ को तृप्त किया है, जिसे मैं पाकर तृप्त कर रहा हूँ। तो दम्भ को छोड़ना बडे योगियों के लिए भी बहुत कठीन है। जो व्यक्ति दम्भपूर्वक व्रत-अणुव्रत स्वीकार करके परम पद चाहता है, वह ऐसा ही है जैसे कि कोई लोहे की नाव मैं बैठ कर समुद्र पार करना चाहे। लोहे की नौका पर चढ़ा हुआ आदमी समुद्र में डूब जाता है, वैसे ही दम्भी संसार समुद्र में डूब जाता है। इस प्रकार दम्भ के गम्भीर अनर्थों को लक्ष्य में रखकर दम्भ के पाप को दूर करने का प्रयत्न किजिये।
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