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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुश्किल है, वैसे शुभयोग से छिटक कर अशुभ योग में गये मन को स्थिर करना मुश्किल है। कबीर ने मन को पक्षी की उपमा दी है मन मेरा पंखी भया, जहाँ तहाँ उड़ जाय। जहाँ जेसी संगत करे वहाँ वैसा फल पाय॥ पक्षी की तरह मन जहाँ-तहाँ उड़ा करता है। एक जगह पर स्थिर होकर बैठ नहीं पाता है। संस्कृत में एक जगह लिखा है- “चित्त नदी उभयतोवाहिनी वहति पापाय च वहति पुण्याय च"। चित्त नदी जैसा है। नदी जैसे दो किनारों से बहती है, वैसे मन पाप के मार्ग में भी बह सकता है और पुण्य के मार्ग में भी बह सकता है । उपाध्याय श्री यशोविजयजी भी मन को जीतना कितना कठीन है उस बात को अपने शब्दों में कह रहे हैं वचन कायाने तोबांधाए मन नवि बांध्युंजाय, मन बांध्या विण प्रभुना मिले करीएकोडी उपाय। मर्कट जैसे मन को जहाँ-तहाँ भटकने से रोकना हो तो उसे प्रभु के नाम के साथ बांध दिजिये । प्रभु नाम की जंजीर से बंध जाने के बाद उसकी ताकत नहीं कि कहीं जा सके भटक सके । भाग्यशालियों! मन तो बादशाह है बादशाह! बदशाह को क्या चाहिए? आपको पता है? एक बादशाह की फकीर से दोस्ती थी। दोनों कभी-कभी एक दूसरे के वहाँ जाया करते थे। कभी बादशाह झोंपड़ी पर आ जाते तो कभी फकीर बादशाह के दरबार में आते थे। एक बार बादशाह अनायास फकीर की झोंपड़ी पर पहुँच गये। पूर्व सूचना नहीं मिलने से फकीर बाहर चले गये थे। उनका शिष्य हाजिर था। बादशाह को जानता नहीं था इस कारण से उसने उन्हें बैठने के लिए गुदडी बिछाई, किन्तु बादशाह वहाँ बैठे नहीं चक्कर ही काटते रहे। शिष्य ने सोचा शायद इन्हे गुदड़ी में बैठना अच्छा नहीं लगता होगा। बैठने के लिए कुछ और लाता हूँ। यूं सोचकर उसने खटिया लगाई, फिर भी बादशाह बैठे नहीं, चक्कर ही काटते रहे। शिष्य ने सोचा! झोंपड़ी में शायद गरमी लग रही होगी। तब उसका चक्कर - -107 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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