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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाचार का अखबार फेरिया फेंक जाता है, उस अखबार को जाग्रत आत्मा आने वाले कल की पस्ती में देखती है, जिसके टूकडों में हलवाई मिठाई बांधकर देने वाला है। जाग्रत आत्मा को स्टील सेट में कबाड़ा नजर आता है। मखमल के गलीचे में उसे चिथडों के दर्शन होते है पदार्थ के परिवर्तन में मन को स्थिर रखना बहुत बडी साधना हुआ करती है अतः पदार्थ परिवर्तन में भी मन की स्थिरता आनी चाहिए। आत्म साधना के लिए स्थिरता बहुत जरूरी है। यूं तो किसी भी कार्य के लिए स्थिरता अनिवार्य है। स्थिरता का मतलब सभी शक्तियों का एक ही जगह पर केन्द्रिकरण । बिलोरी काँच से जब सूर्य धूप एक ही बिंदु पर स्थिर केन्द्रित बनती है तब वह बिंदु वाला रूई, कपड़ा जलने लगता है। केन्द्रीकरण की कितनी बड़ी ताकत है। जगह-जगह दो-दो फिट जमीन खोदने से पानी होगा तो भी नहीं मिलेगा, परंतु एक ही जगह पर खोदे तो? चंद्रयश राजा के हृदय में धर्म स्थिर बना था। उन्होंने श्रावक व्रत स्वीकार किये थे। उन्हे नित्य ध्यान धरने का नियम है। एक बार ध्यान धरते हुए ऐसा संकल्प किया कि दीपक जलता रहे वहाँ तक मुझे ध्यान धरना है और वे आत्मभाव में ध्यानस्थ खड़े है। रात का प्रथम प्रहर पूर्ण होते ही दासी ने आकर दीपक में तेल डाला। राजा! अपने शुद्ध भाव में स्थिर है। काया को कष्ट हो रहा है। फिर भी ध्यान में खड़े है। दूसरा प्रहर पूरा होते ही दासी फिर आई और दीये में तेल डालकर चली गई। इस तरह रात्रि के चारों ही प्रहर राजा को ध्यान में खड़े हुए देखकर दासी दीये में तेल डालती रही और राजा की पूरी रात धर्म जागरण ध्यान में बीत गई। राजा ने देह का दमन करके पूरी रात धर्म जागरण किया। हम शरीर को पोषण करके रातों में जाग कर कर्मबंधन बढ़ाते है। उस चन्द्रयश राजा का शरीर एक ही अवस्था में स्थिर रहने से (जकड़) अकड़ गया। देह को कष्ट होने से आयुष्य पूरा हुआ और वे सद्गति को पा गये । एकाग्रता स्थिरता का इतना महत्त्व सुनकर हमें प्रश्न हो सकता है कि ऐसी स्थिरता कैसे पायी? कई लोग पूछते है कि महाराजजी। सभी संत प्रेरणा करते हैं इसलिए माला %3-104 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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