________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्री यशोदेवीये
प्रत्या
ख्यान
स्वरूपे
॥ २३ ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परलिंगिनिण्हए व सम्मसणजढे उ उवसंते । तद्दिवसमेव इच्छा सम्मत्तजुए समा तिन्नि || २७१ || मुकवओ पुण दुविहो सारूवी होइ तह गिहत्थो य । तत्थ य रयहरणवज्जिय जइवेसधरो उ सारूवी ॥ २७२ ॥ किंच- मुंडसिरो सियवत्था सभज्जऽभज्जो व मुक्ककच्छो य । पत्तेहि भमइ भिक्खं अवभयारी य सारूवी ॥ २७३ ॥ सो जाजीव गुरुणो | तेण य मुंडीकयाणिवि तहेव । तेणेव बोहियाणं अमुंडियाणं पुणो इच्छा || २७४ ॥ अणवच्चे सेसविही पुत्र्वायरियरस तस्सवच्चाइ । आभव्वाइं नियमा मुंडिय इयराई नऽन्नस्स ।। २७५ || जो पुण गित्थमुंडो अहव अमुं - डो उ तिण्ह वरिसाण । आरेण पव्वावे सयं च पुव्वायरिय सव्वे ॥। २७३ || भरहस्स पुत्र्वजम्मो आहरणं होइ साहुणो दाणे । गिहिणो घणसत्यवइदिहंतो जुन्नसेट्ठी वा ॥ २७७ ॥ हरिण वणछेइणो वा अहवा गामस्स चिंतगो पुरिसो । कयन्नसालिभद्दा दाणफले अहव दिता ॥ २७८ ॥ भरणं पुत्र्वभवे बेयावच्चं कयं सुविहियाणं । तो तस्स पभावेणं जाओ भरहाहिवो राया ।। २७९ ।। लद्धूण केवलसिरिं लक्खं पुत्रवाण संजमं काउं । नीसेसकम्ममुको भरहरिसी सिवपयं पत्तो ।। २८० ।। दाणेण मुणिवराणं धणोवि कल्लाणभायणं होउं । तेलुकनमियचलणो जुगाइदेवो जिणो जाओ ।। २८१ ॥ आह कह जुन्नसंडीदितो अस्थादिन्नदाणोवि । दिन्नं चिय भावेण सोच्चिय जं उत्तमो एत्थ ।। २८२ ।। अविय तस्सेरिसपरिणामो जेण तथा केवलंपि पावितो । जिणपारणवृत्तंतं जइ न सुर्णेतो खणं एकं ।। २८३ ।। एत्तोच्चिय नवसेट्ठी जिणस्स वीरस्स लोगनाहस्स । जाइच्छियदाणेणं न भायणं सग्गमोक्खाणं ॥ २८४ ॥ अह पडिया तस्स गिहे वसुहारा तेण भावहीनंपि । दाणं तस्सवि सहलं (आचा० ) किं इमिणा एग
For Private and Personal Use Only
दाने दिग्विधिः
॥ २३ ॥