________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्रीयशोदेवीये
प्रत्या
ख्यान
स्वरूपे
॥ १४ ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वासणं अत्थो पढमगमेणं भणेयव्वो ।। १५८ ॥ - चरिमो अंतिम भागो दिवसस्स भवस्स चैव नायव्वो । तव्विसयं इह भण्णइ पच्चक्खाणंपि चरिमंति ॥ १५९ ॥ दुविहेवि तम्मि चउरो आगारा हुंति नवरि भवचरिमं । | सागारमणागारं पढमदुगं तत्थऽणागारे ।। १६० ।। तणवत्थंगुलिमुहे मुहं पविट्टे हवेज्ज मा भंगो। तो तत्थवि आगारा न उणो आहारबुद्धी ।। १६१ ।।
सूत्राणि चामूनि - दिवसचरिमं पच्चक्खाइ चउव्विपि आहारं असणं०४, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ ॥ भवचरिमं पच्चक्खाइ तिविहंपि चव्विपि वा आहारं असणं ० ४, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारणं महत्तरागारणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसरह || निरागारे तु-भवचरिमं पच्चक्खाइ तिविहंपि चव्विहंपि वा आहारं असणं० ४, अन्नत्थणा भोगेणं सहमागारेणं वोसिरह ||
एक्कासrasia कए दिणचरिमं सफलमेव जेण तयं । थोवागारं इयरं बहुआगारं विणिदिहं ।। १६२|| एक्कासणाइ एतो देवसियं चैव होइ नायव्वं । निसिविरई जा जीवं तिविहंतिविहेण जेण कया ।। १३३ ।। एत्तोत्ति बह्नाकारत्वतः । गिहिणो पडुच्च दिवस रूढिवसाओ भणतऽहोरत्तं । तो तेसिं निसिभोगणविरयाणवि गुणकरं चैव ॥ १६४ ॥
For Private and Personal Use Only
चरमप्रत्या
ख्यानानि
॥ १४ ॥