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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९२० - प्रश्नव्याकरणसूत्रे गंधाणि 'गन्धान ' अग्याइय' आघ्राय 'किं ते ' काँस्तान् कथंभूतांस्तान गन्धानाघ्राय ? इत्याह- 'अहिमड-अस्समड-हत्थिमड- गोमड-विग-मुणगंसियाल-मणुय-मज्जार- सी ह- दीवियमयकुहियविणकिमिणबहुदुरभिगंधाई' अहिमृताश्वमृतहस्तिमृतगोमृतकशुनक-शृगाल-मनुज-मार्जार-सिंह द्वीपिकमृतकुथितविनिष्टकृमिवेदबहुदुरभिगन्धान्तत्र-अहिमृतानि-अहीनां सर्पाणां मृतानि =मृतशरीराणि, अश्वमृतानि=अश्वानां मृतशरीराणि, हस्तिमृतानि हस्तिनां मृतशरीराणि, गोमृतानि गवां मृतशरीराणि, तथा-कस्य ईहामृगस्य ' कोक ईहामृगो वृकः' इत्यमरः, शुनकस्य कुक्कुरस्य शृगालस्य ' गीदड' इतिप्रसिद्धस्य, मनुजस्य-मनुष्यस्य, मार्जारस्य=विडालस्य, सिंहस्य केशरिणः, द्वीपिकस्य-चित्रकस्य च यानि मृतानि मृतशरीराणि, कथम्भूतानीमानि ? सुथितानि-शटितानि, अतएव-विनिष्टानि=विनष्टाकृतिकानि, कृमिवन्ति कृमिसंकुलानि, तेषां बहुदुरसे (अपणुण्ण पावगाइं ) अमनोज्ञ अशुभ (गंधाणि ) गंध-दुर्गन्ध को ( अग्घाइय ) सुंघकर के साथु को उसमें द्वेष-अरचि परिणाम-अरति वृत्ति नहीं करनी चाहिये । (किं ते ?) दुर्गन्ध के विषयभूत पदार्थ कौन २ से हैं इस प्रश्न का उत्तर देने के लिये सूत्रकार उन पदार्थों में से किन नेक पदार्थों को प्रकट कटते हैं-जैसे-(अहिमड-अरस्लमड-हत्थिमडगोमड-विग सुणग-सियाल-मणुय-मज्जार-सीह-दीविय-भय -कुहिय विणट्ठ किषिण बहुदुरभिगंधाई) अहितक, सर्पका मृतकलेवर, घोड़े का मृतकलेवर, हस्ती का मृतकलेवर, गाय का भूतकलेचर, वृक का मृतकलेवर, कुत्ते का मृतकलेवर, शृगाल का मृतकलेवर, मनुष्य का मृतकलेवर, विडाल का मृतकलेवर, सिंह का मृतकलेवर. चित्रक-बीते का मृतकलेवर, ये सब जब कुथित-सड़ जाते हैं, तब इनमें कीडे पड़ न्द्रियथा “ अमषुण्णपावगाई " ममनो। मशुम “ गंधाणि " - धने “ अग्याइय" भूधाने साधुसे तेना प्रत्ये द्वेष-भरुन्थिन। भाव-मतिवृत्ति ४२१न नहीं. " कि ते दुग यु४त पदार्थी या छ्या छ तना ઉત્તર આપતા સૂત્રકાર તે પદાર્થોમાંથી કેટલાંક પદાર્થોનો ઉલ્લેખ કરે છે. જેમ " अमिड-अस्समड-हत्थिमड-गोमड-विग सुणग-सियाल-मणुध - मज्जारसीह-दीविय-मय -कुहिय-विण?- किमिण-बहुदुरभिगंधाइ " मडिभृत-भरेसा સાપનું શરીર, ઘડાનું મૃતશરીર હાથીનું મૃતશરીર, વરૂનું મૃતશરીર સિંહનું મૃત શરીર, કૂતરાનું મૃત શરીર શિયાળનું મૃત શરીર, માણસનું મડદુ, ચિત્તાનું મૃત શરીર, એ બધાં જ્યારે સડે છે ત્યારે તેમાં કીડા પડે છે અને For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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