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प्रश्नव्याकरणसूत्रे कुथितो दुर्गन्धयुक्तो यः स तथोक्तस्तै 'दब्बरासिं ' द्रव्यराशि-पुरीपादिद्रव्यसमूह च दृष्ट्वा 'एवमाइएम' एवमादिकेपु-एवं प्रकारेषु 'अमणुन्नपावगेमु' अमनोज्ञपापकेषु, तथा-एभ्यः 'अन्नेसु' अन्येषु च 'तेमु तेषु अमनोज्ञपापकेषु समुपस्थितेषु 'समणेण ' श्रमणेन-साधुना ' न रुसियव्वं ' न रोष्टव्यम् , ' जाव' यावत्पदान 'न हीलितव्यम् , न निन्दितव्यम् , न खिसितव्यम् , न छेत्तव्यम् , न भेत्तव्यम् न हन्तव्यम् , इति । षट्पदानि संग्राह्याणि । तथा-श्रमणेन , दुगुंछावत्तियावि' जुगुप्सात्तिकाऽपि न लब्भा' लभ्या ' उप्पाएउं' उत्पादयितुम् । एवम् अकुहियं च दव्यरासिं ) कृमिसहित सडे हुए दुर्गंधित पदार्थ को और पुरीष आदि द्रव्य समूह को देख कर के इनमें तथा ( अन्नेसु य एषमाइएसु) इनसे भिन्न और जो इसी तरह के (अमणुण्णपावएसु तेसु) अमनोज्ञ अशुभ पदार्थ समक्ष उपस्थित हो उनके ऊपर (समणेणं ) साधुको (न रुसियव्वं ) रोष नहीं करना चाहिये । यावत् पद से (न हीलियब्वं ) अवज्ञा नहीं करनी चाहिये, उनकी (न निंदियव्वं ) निंदा नहीं करना चाहिये, ( न खिसियव्वं ) उनकी दूसरे के सामने निंदा नहीं करनी चाहिये । इसी तरह (न छिदियध्वं) अमनोज्ञरूप आकृति का छेदन नहीं करना चाहिये । (न भिदियब्वे) न भेदन करना चाहिये। ( न बहे यव्वं ) न अनिष्ट रूपवाले व्यक्तिका वध करना चाहिये । इसी प्रकार से इन पदार्थों के ऊपर साधु को ( न दुगुंछा बत्तियावि लम्भा उप्पाएउ ) जुगुप्सावृत्ति भी उत्पन्न करना उचित नहीं है । (एवं ) इस
शन “ सकिमिणकुहियं च व्वरासि” भिसहित सता हु युत पहानि भने पुरीष माहि द्रव्य समूडने नन तेभा तथा “ अन्नेसुय एवमाइएसु" से पसंत २३ २४ २. allon " अमणुण्ण पावएसु तेसु" ममनोन, मशुम पहा पासे माह डाय तेभन ५२ " समणेणं " साधु " न रुसियव्य" शेष न ४२ मे, " न हीलियव्यं” तेनी As! न ४२वी नेमे, " न " निदिब्य" तेमनी नि न ४२वी ने मे; "न खिसियव्व'' मीना 241101 नि न. ४२वी. मे, 24 प्रभाए " न चिंदियध्वं " ममनोज्ञ भावनी वस्तुनुं छेदन ४२११j नही', "न भिंदियन्त्र, लेहन शqयु नही, " न वहे. यव्य" अनि ३५१जी व्यतिने १५ ४१ मे नही. मे ४ प्रभाव से पहार्थी प्रत्ये साधुझे “ न दुगुछा--वत्तियो वि लब्मा उप्पाए" शुसा वृत्ति ५५५ रामवी ते योग्य नथी. “ एब" मारीते " चक्खुइंदिय
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