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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुशिनीटीका अ० ५ सू० ८ 'चक्षुरिन्द्रियसवर'नामकद्वितीयनिरूपणम् ९०३ म्मे' लेप्यकर्मणि भित्यादौ, ' सेले य शैले-पाषाणे च ' दंतकम्मे ' दन्तकमणि हस्तिदन्तादिषु यन्नरयुगादीनामाकृतिरुट्टयते तद्दन्तकर्म तस्मिंश्च 'पंचहिं वण्णेहिं' पञ्चभिर्वर्णैर्युक्तानि, 'अणेगसंठागसंठियाई' अनेक संस्थानसंस्थितानि' अनेकानि=अनेकप्रकाराणि यानि संस्थानानि आकृतयस्तैः संस्थितानि-युक्तानि, तथा-'गंथिमवेढिमपूरिमसंघाइमाणि य' ग्रन्थिमवेष्टिमपूरिमसंघातिमानि चः, तत्र-ग्रन्थिम-ग्रन्थस्तेन निवृत्तं मालावत् , वेष्टिमम् वेष्टनेन निवृत्तम् पुष्पगेन्दुकवत् , पूरिम-पूरणेन निवृत्तं, यन्त्रे पित्तलादि रसपूरणेन निष्पादितं पुत्तलिकादिकम् , संघातिमम्-संघातेन निवृत्तम् , कपर्दिकादिसंघातेन निष्पादितं कुक्कुटापटियों पर उकेरा जाता है ( पोत्थे य ) पुस्तकों से छापा जाता है, (चित्तकम्मे य ) कागज आदि पर चित्रित किया जाता है मृत्तिका आदि में बनाया जाता है ( लेप्पकम्मे ) रँग आदि से भित्ति आदि पर लिखा जाता है ( सेले य) पाषण के ऊपर अंकित किया जाता है (दंतकम्मे य) हाथी दांत पर खोदा जाता है । इन सब पदार्थों के ऊपर उकेरे गये उन २ आकारों को (पंचहिं वण्णेहिं ) पाँच वर्णों से भरा जाकर बहुत हो सुन्दर रूप से आकर्षक बनाया जाता है । ( अणेगसंठाणसंठियाई ) भिन्न २ रूप में उन चित्रों को सजाया जाता है । इसी प्रकार (गंथिमवेढिमपूरिमसंघाइमाणि य ) माला की तरह गूंथ २ कर जो चित्र बनाये जाते हैं वे ग्रन्थिम, पुष्पगेंद की तरह जो वेष्टित करके चित्र बनाये जाते हैं वे वेष्टिम, किसी पदार्थ पर जो पुत्तलिकादि की तरह रंग से भरकर चित्र बन जाते हैं वे पूरिम, तथा कौडी आदि के परस्पर जोड़ने से कुक्कुट आदि के जैसा जो रूप बनाया जाता है वह संधातिम है। इन सब यितशय छ, “ पोत्थेय " पुस्तामा ७५ाय छे. चित्तकम्मेय" मा ५२ तिवामां आवे छे, माटी माहिया मनावाम मा छे, “ लेप्पकम्मे" २ माहिथा वा माहि५२ सासेपाय छ, “ सेलेय" ५५२ ५२ जोतराय छे, “दंतकम्मेय'' थीin ५२ अतरवामां आवे छे, ते सपा पहा ५२ माहित ४२० ते मारीने "पचहि वण्णेहिं " पाय २ ने मई सुंदर भने म मनापाय छे. “अणेगसंठाणसंठियाई ” भिन्न भिन्न रात तेना सन्तपट राय छे. मे ४ रीते "गंथिमबेढिमपूरिमसंघाइमाणि य" માળાની જેમ ગૂંથી ગૂંથીને જે ચિત્ર બનાવવામાં આવે છે તે ગ્રંથિમ, પુષ્પના દડાની જેમ જે ચિત્ર વેષ્ટિત કરીને બનાવાય છે વેષ્ટિમ, કઈ પદાર્થ પર પુતળી આદિની જેમ રંગથી ભરીને જે ચિત્ર બનાવાય છે તે પૂરિમ, તથા કડી આદિને એક બીજામાં પરોવીને કૂકડા આદિ જે જે આકાર બનાવાય છે તે For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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