SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 793
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४४ प्रश्नव्याकरणसूत्रे । ' यत्र - ' " अथ कथम्भूते उपाश्रये साधुभिर्न वस्तव्यम् ? इत्याह- ' आहाकम्मबहुले ' आधाकर्मबहुल:=आधानम्-आधातया, अर्थात् साध्वर्थं यत्पट्कायो पमर्दनरूपं कर्म तेन बहुलो व्याप्तो 'जे' यः एवं विध उपाश्रयो ' से ' स वर्जयितव्यः । अनेन अदतादानविरमणलक्षणमूलगुणाशुद्धेः परिहारः उक्तः स दोपत्र सत्युपभोगेन मूलगुणहानिर्भवतीति भावः । तथा 'जस्थ ' अतो ' अन्तर्भागे 'बाहि बहिर्भागे, 'मज्झे य' मध्ये च ' आसियसम्मज्जि ओसित सोहियछाणदुमण लिंपण अणुलिंपण जलगभंडचालण ' आसक्ति संमार्जितोत्सिक्तशोधितछाणधवलनलेपनानुलेपनज्वलनभाण्डचालनम् - तत्र - आसिक्तम् = आसेचनम् = उदकादिच्छोटनमित्यर्थः, सम्मार्जितम् = शलाका हस्तेन मार्जन्येत्यर्थः, कच वरसंशोधनम्, शोधितं = भित्त्यादि संलग्नजालाद्यपनयनेन शुद्धीकृतं ' छाण' छाणं छगणनंगोमयेन संस्करणम्, दुमणं धवलनं-सेटिकादिना मित्यादेरुज्ज्वलीकरणम्, कम्मबहुले य जे से) और जो उपाय आधाकर्म बहुल हो - साधु के निमित्त कायमर्दनरूप कर्म से व्याप्त हो उसमें साधु को नहीं वसना चाहिये । क्यों कि ऐसे उपाश्रय में रहने से साधु के इस अदत्तादान - विरमणरूपमूलगुण की शुद्धि नहीं रहती है। और नहीं रहने से इस मूलगुण की शुद्धि रहती हैं। तात्पर्य इसका यह है कि सदोपवसति के उपभोग से साधु के मूलगुणों की हानि होती है यही बात "अहाकम्म बहुलेय जे से" इस सूत्रांश द्वारा प्रदर्शित की गई है। तथा (जस्थ अंतो बहिं मज्झे य) जो उपाश्रय भीतर में बाहिर में और मध्यभाग में (आसिम ओमित्त सोहिय छाण- दुमणलिंपण- अणुलिंपण-जल ' भंड चालणं) पानी से छिड़का हुआ हो, बुहारु-संमार्जनी से जहां का कूडा कचरा साफ कर दिया गया हो, भीत आदि पर लगे हुए जाले जहाँ उतार दिये गये हों, जो गाय के गोबर से लीपा गया हो, चुने आदि से ८८ વાત 66 સાધુને નિમિત્તે કાય મનરૂપકથી વ્યાસ હાય, તેમાં સાધુએ રહેવું જોઇએ નહીં. કારણ કે એના ઉપાશ્રયમાં રહેવાથી સાધુના આ અદત્તાદાન વિરમણુરૂપ મૂળ ગુણાને હાનિ થાય છે, એ જ अहाकम्म - बहुले य जेसे " मा સૂત્રાંશ દ્વારા પ્રગટ કરેલ છે. તથા जत्थ अंतो वहिं मज्झे य" ने उपाश्रय અંદર, બહાર અને મધ્ય ભાગમાં “ आसियसंमज्जिओसित्तसोहियछाण दुमण लिंपणअणुलिंपणजल भडचालणं " पाशुी छांटेस होय, सावरणीयी त्यांना કચરા સાફ કર્યો હાય, દીવાલ આદિ પર લાગેલાં જાળાં જ્યાંથી ઉતારી લીધાં ડૅાય, જે ગાયનાં છાણથી લીંપેલ હોય, ચુના વગેરેથી જેની દીવાલે For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy