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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्या सुदर्शिनी टीका भ) ३ सू०४ कोमुनिरदत्तादानादिवतमाराधयति? ७२२ साधर्मिके तपस्विकुलगणसवे, तत्र अत्यन्तवाला चष्टवषोयोवालः, अत्यन्त दुर्वलः कृशाङ्गत्वेन स्वकार्यकरणाक्षमः, 'गिलान ' ग्लानः व्याध्यादिना भिक्षाटनादावसमर्थः, 'बुडू वृद्धः स्थविर ज्ञानवृद्धः, पर्यायवृद्धः, वयोवृद्धश्च, 'खवग'. क्षपका-मासक्षपणाग्रतपाकारित्वेन प्रवचनप्रभावकः, ‘पवत्तय' प्रवर्तकःप्रशस्तयोगेषु यथायोग्यतया साधून प्रवत्तयतीति प्रवत्तकः, आचार्यः गणनेतायो हि शास्त्रानुसारेण स्वयमाचरति, अन्याश्चाचार यति स आचार्यः, तदुक्तम् " आचिनोति च शास्त्राणि, आचार ग्राहयत्यपि । स्वयमाचरते यस्मात्तस्मादाचार्य उच्यते " इति। उपाध्यायः-उप-समीपे आगतान्-शिष्यान् सूत्रार्थमध्यापयति यः स उपाध्यायः, एनेषां समाहारद्वन्द्वः, तस्मिन्, तथोक्ते, तथा ' सेहे' शैक्षे-नवदीक्षिते साधी, तथा- साहम्मिए ' सार्मिके श्रुतलिङ्गप्रवचनैः समानश्रद्धावान् बालक साधु हैं तथा जो दुर्घल हैं-कम जोर होने से जो अपने कार्य करने में अक्षम है, जो ग्लान हैं-व्याधि आदि के निमित्त को लेकर जो भिक्षावृत्ति आदि करने में असमर्थ हैं, जो वृद्ध हैं-स्थविर-जरा से जर्जरित शरीर वाले हैं ज्ञान की अपेक्षा दीक्षापर्याय की अपेक्षा और आयु की अपेक्षा जो वृद्ध-घडे हैं, जो क्षपक हैं मासक्षपक आदि उग्र तपस्या करने वाले हैं, जो प्रवर्तक हैं-प्रशस्त-योगोंमें साधुजनो को उनकी योग्यता के अनुसार प्रवृत्ति कराने वाले हैं, जो आचार्य हैगण के नेता हैं-अर्थात्-साधु संबंधी आचार को जो स्वयं पालते हैं, और दूसरे साधुओं से पलाते हैं, जो उपाध्याय हैं-अपने पासमें आये हुए साधुओं को-शिष्यजनों को जो सूत्र पढाते हैं, जो (सेरे) शिष्य हैं-नव दीक्षित साधुजन हैं, जो (साहम्मि ) साधर्मिक है-श्रुत लिङ्ग और प्रवचन-प्ररूपणा इनको लेकर जिनकीश्रद्धा समान है जो જે પિતાનાં કામ કરવાને અસમર્થ છે, જે પ્લાન છે વ્યાધિ આદિ ને કારણે જે ભિક્ષાવૃત્તિ આદિ કરવાને અસમર્થ છે, જે વૃદ્ધ છે- વિર–જરાને કારણે જર્જરિત શરીરવાળા છે. જ્ઞાનની અપેક્ષાએ દક્ષા પર્યાયની અપેક્ષાએ અને આયુની અપેક્ષાએ જે વૃદ્ધ મેટાં છે, જે ક્ષેપક છે મા ખમણ આદિ ઉગ્ર તપસ્યા કરનાર છે, જે પ્રવર્તક છે- શરત યોગમાં સાધુજનોને તેમની યોગ્યતા અનુસાર પ્રવૃત્તિ કરાવનાર છે, જે આચાર્ય છે–ગણના નેતા છે એટલે કે સાધુના આચારેને જે જાતે પાળે છે અને બીજા સાધુઓ પાસે પળાવે છે, જે ઉપાધ્યાય છે–પિતાની પાસે આવેલા સાધુઓને-શિષ્યજનને જેઓ सूत्री लाव छ, रे " सेहे " शिष्य छ-नवदीक्षित साधुमे। छ, २ "सा For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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