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सुदर्शिनी टोका अ० २ सू० ३ सत्यस्वरूपनिरूपणम्
६७५ तथा-' बहुविहेहि सिप्पेहिं ' बहुविधैः शिल्पैः= आचार्याधिगतैः चित्रकर्मादिभिः क्रियाविशेषैः, 'आगमेहि' आगमैः सिद्धान्तैश्च युक्तं सत्यं वक्तव्यम् । पुनः कीदृशं सत्यं वक्तव्यम् ? इत्याह-' नामकवाय निकाय उवसग्गतद्धियसमाससंधि पयहेउजोगियउणाइकिरियाविहागधाउसरविभत्तजुत्त ' नामाख्यातनिपातो - पसर्गतद्वितसमाससन्धिपदहेतुयौगिकोणादिक्रियाविधानधातुम्वरविभक्तियुक्तं-- तत्र-नाम-व्युत्पन्नमव्युत्पन्नं च द्विविधं, तत्र-व्युत्पन्न-जिनदत्तजिनदासादि, अव्युत्पन्न-डित्थडवित्यादि, आख्यातम्-क्रियापदं भूतभविष्यद्वर्तमानरूपम् , से (कम्मेहिं) कृष्यादि व्यापाररूप कर्मों से (बहुविहेहिं सिप्पेहिं ) आचार्याधिगत चित्रकर्मादिरूप क्रिया विशेषों से, तथा (आगमेहिय ) आगम-सिद्धान्तों-से युक्त हों ऐसे सत्यवचन बोलना चाहिये । ( नामक्खायनिवाय उवसग्गतद्धियसमाससंधियहे उजीगिय उणाइकिरिया विहाणघाउसरविभत्तिवनजुत्तं ) इसी तरह, नाम, आख्यात, निपात, उपसर्ग, तद्धित, समास, सन्धि, पद, हेतु, योग, उगादिप्रत्यय, क्रियाविधान, धातु, स्वर, विभक्ति और वर्ण इनसे युक्त हो (तिकल्लं दसविहं पिसच्चं) त्रिकाल विषयाला जनपद सत्य आदि दस प्रकार का भी सत्यवचन बोलना चाहिये। व्युत्पन्न और अव्युत्पन्न के भेद से नाम दो प्रकार का होता है। जिनदत्त, जिनदास आदि नाम व्युत्पन्न नाम हैं,
और डिस्थ, डवित्थ आदि नाम अव्युत्पन्न नाम हैं। आख्यात नाम क्रियापद का है। यह भूत भविष्यत् और वर्तमान के भेद से तीन प्रकार का होता है, जैसे-अभवत्, भविष्यति और भयति । अर्थ में
थी, " बहुविहेहिं सिप्पेहिं " मायाधिगत मिहि३५ जियाविशेषाथी, तथा “ आगमेहिय' माम-सिद्धांताथी युवा हाय का सत्यपयन माi as. " नामक्खायनिवाय-उवस'गतद्धिय-समाससंधिपयहे उजोगिय--उणाइ किरियाविहाणधाउसरविभत्तिवन्नजुत्तं " से प्रभारी नाम, ध्यात, निपात, उपस, तद्वित, सभास, सन्धि, ५४, उतु, योग, &, प्रत्यय, (यादि. धान, धातु, २१२, विति, मने माथी युत आय "तिकल्लं दसविह पि सच्च " aिson विषयाज ४५६ सत्य माहि १२५ ४।२i ५५ સત્યવચન બોલવાં જોઈએ. વ્યુત્પન્ન અને અવ્યુત્પન્ન ભેદથી નામ બે પ્રકારનાં डाय छ. जिनहत, निहास याहि व्युत्पन्न नाम छे, मने डित्थ, डवित्थ આદિ અવ્યુત્પન્ન નામ છે. આખ્યાત નામ ક્રિયાપદનું છે. તે ભૂત ભવિષ્ય અને तभानना महथी त्रय प्रा२न छ, म अभवत् (थये। ) भविष्यति (20)
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