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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
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'कंती' कान्तिः प्रसन्नता तद्धेतुत्वात् ६, 'रई य' रतिः=आनन्दस्तज्जनकत्वात् ७, 'विरई य' विरतिः विरागः सावद्यकर्मवर्जितत्वात् , ' सुयंग' श्रुताङ्गा श्रुतंश्रुतज्ञानाङ्गं कारणं यस्याः सा तथोक्ता, उक्तमपि-" पढमं नाणं तओ दया" इति ९, 'तित्ती' तृप्तिः संतोषः सर्वप्राणिसंतोषजनकत्वात् १०, दयामाणिरक्षा. उपमर्दनवर्जितस्यात् ११, 'विमुत्ती' विमुक्तिः- विरुच्यन्ते प्राणिनः सकलवधका अभाव होता है वहीं शांति होती है, अहिंसा में द्रोह का लेश भी नहीं होता है, इसलिये इसे शांति शब्द से व्यवहृत किया गया है ४ । (कित्ती ) यशकी हेतुभूत होने से इसका पांचवां नाम कीति है। अहिंसक जीव की कीर्ति का सर्वत्र विस्तार होता है यह बात सुप्रसिद्ध ही है ५। (कंती) प्रसन्नता की हेतुभूत होने से इसका नाम कान्ति भी है ६ । (रई य ) आनन्द की उत्पादक होने से इसका नाम रति है ७ । (विरई य) सावद्यकर्मों से वर्जित होने के कारण इसका नाम विरति भी है ८ । (सुयंग ) इस अहिंसा का कारण श्रुतज्ञान होता है इसलिये इसका नाम श्रुनाङ्ग है । क्योंकि ऐसा कहा है कि पहिले ज्ञान होता है बाद में दया ९ । (तित्ती) समरत प्राणियों के लिये यह संतोषजनक होती है इसलिये इसका नाम तृप्ति है १० । इस अहिंसा में प्राणियों की रक्षा होती है इसलिये प्राणियों के प्राणों के उपमर्दन कृत्य से रहित होने के कारण यह (दया) दयारूप है ११। इसके प्रभाव से प्राणी समस्त प्रकार के वध एवं बंधनों से छूट जाता है સામાં દ્રોહનું નામ માત્ર પણ હોતું નથી તેથી તેને શાન્તિ શબ્દથી વર્ણવેલ છે. (४) "कित्ती' यराना १२ ३५ पाथी तेनुं पायभु नाम प्रीति छ. माडिंस
नाति सर्वत्र साय छे ते पात सुप्रसिद्ध छे. (५) “ कंती " प्रसन्नता ४१२९५३५ पाथी तेनु नाम अन्ति पY . (6) "रईय" न ४२नार
पाथी तेनाम २ति छ. (७) “विरईय" सावध भौथी २डित वाथी तेनु नाम विरति पाप छ. (८) "सुयंग" मा डिसाने ४२) श्रतज्ञान थाय छे, तेथी तेनु નામ થતાંગ છે, કારણ કે પહેલા જ્ઞાન થાય છે, અને ત્યાર પછી દયા એવું लामे छे. (6) "तित्ती” समस्त प्राणीमाने भाटे ते संतोष नहाय છે તેથી તેનું નામ તૃપ્તિ છે. (૧૦) આ અહિંસાથી પ્રાણીઓની રક્ષા થાય છે, तेथी प्राणीमान प्रानुसा२ना त्यथी ते २खित पाथी ते " दया" या३५ છે. (૧૧) તેના પ્રભાવથી પ્રાણીઓ સમસ્ત પ્રકારના વધ અને બંધનમાંથી મુક્ત થાય છે, તેથી સકળ વધબંધનેથી પ્રાણીઓને મુકત કરાવનાર હોવાથી
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