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प्रश्नव्याकरणसूत्रे है नाना प्रकार के दुःखो का दाता है। (त्ति बेमि ) ऐसा हे जंबू ! मैं कहता हूं। इस प्रकार सुधर्मास्वामीने जंबूस्वामी को इसके विषय में समझाया है । सू०१५॥
॥ चतुर्थ अधर्मद्वार समाप्त ।।
भान छ, भने “ दुरंत " तेनुं अवसान दुत छ-नाना ॥२॥ दु: ॥३ छ. “त्तिवेमि" से है ! ९४ छु. २मा भूपाभीने सुधभवानी साना विषे समनव्यु छ. ॥ सू. १५ ॥
यो मासव (अ)वार समास थयु.
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