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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू० १४ चतुर्थमन्तरिनिरूपणम् येषांते तथा । तथा — मेहुणमूला य' मैथूनमूलाश्च स्त्री हेता एवेत्यर्थः 'तत्थ तत्थ' तत्र तत्र लोके शास्त्रे च 'वत्तधुन्या ' वृत्तपूर्वाः भूतपूषोः 'जनस्वयकरा' जन क्षयकरा-जनसंहारकारकाः-रामरावगादीनां 'संगामा' संघामाः सुवति' श्रूयन्ते । कस्याः कस्याः स्त्रियो-निमित्तं संग्रामा जाताः ? इत्याह_ 'सीपाए दोचईए कए' सीतायाः द्रौपद्याश्च कृते-सीताद्रौपदोनिमित्तमित्यर्थः एवं ' रुप्पिणीए पउमावई-ताराए कंवणाए रत्तसुभदाए अहिन्नियाए सुवण्णगुलियाए किन्नरीर य सुरूवविज्जुमईए रोहिणीए य' रुक्मिण्याः, पद्मावत्याः, तारायाः, काञ्चनायाः, रक्त प्रदायाः, अतिकायाः सुवर्णगुटिकायाः, किनश्चि जाता है। तथा (मेहुणमूला य तत्थ तत्थ वत्ताबा,जगन्वयकरा संगामा सुचंति ) लोक और शास्त्र में जितने भी पहिले राम रावण आदि के जनक्षय कारक संग्राम हुए सुने जाते है वे सब मैथुनमूलक ही हुए हैं । इन सब लोक और शास्त्र प्रसिद्ध यत्र तत्र हुए संग्रामों का मूल कारण एक स्त्री हुई है। ____ अब सूत्रकार इसी बात को विशेष स्फुट करते हैं किस २ स्त्री के निमित्त संग्राम हुए हैं इस विषक को कहते हैं-'सीयाए' इत्यादि। टीकार्य:-( सीयाए, दोवईए य कए ) सीता और द्रौपदी के निमित्त (रूपिणीए, पउनावई, तारार, कंवगाए. रतउभद्दा अहिनियाए सुवण्णालियार, किन्नए, सुरूव विजुमईए, रोहिणीए य ) सभी के निमित, पद्मावती के निमित्त, तारा के निमित्त, कांचना के निमित्त, रक्त सनद्रा के निनित, मुर्वा गुटिका के निमित्त, किन्नरा के निमित्त, नाश पाये। य छे. त! “ मेहुणनेला य तत्थ तत्थ वत्त मुल्वा जगक्खयकरा संगामा सुचंति " । सुटिमा राम २०१७ मा पस्येनभाणुसोनी क्षय કરનારા જે સંગ્રામે થયા છે. તથા શાસ્ત્રોમાં જે સંગ્રામે વર્ણવવામાં આવે છે તે બધાનું મૂળ કારણ મૈથુન જ છે. તે બધા લેકપ્રસિદ્ધ તથા શાસપ્રસિદ્ધ સ્થળે સ્થળે થયેલા સંગ્રામનું મૂળ કારણ કેઈ ને કોઈ સ્ત્રી જ હતી. હવે સૂત્રકાર એ બાબતનું વધુ સ્પષ્ટિકરણ કરે છે કયી કયી રત્રીઓને ४४२ साम! थय ते मताव छ-" सीयाए" त्याल. :-" सीयाए, दोवईए य कए " सीता मने पहीन रणे “ रुप्पिणीए, पउमावईए, ताराए, कंचणाए, रत्तसुभदाए, अहिन्नि गर सुवण्णगुलियाए,-किन्नरीए, सुरूवावज्जुमईए, रोहिणीए य” २४ान निमित्त, पद्मावतीने નિમિતે, તારામતીને નિમિત્તે. કાંચનાને નિમિત્તે, રક્તસમુદ્રાને નિમિત્ત, અહનિકાને નિમિત્તે, સુવર્ણ ગુટીકાને નિમતે, કિન્નરીને નિમિત્ત, સૌદર્યવતી For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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