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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir બટર प्रश्नव्याकरणसूत्रे = = नासिका नयनाग्राकारः यौवनं तरुणावस्था, गुणाः = औदार्यमाधुर्य सौकुमार्यादयस्तैरुपेताः = युक्ता या स्वास्तथा, 'गंगवणविवरचारिणी ओव्यअच्छराओ' नन्दनवन विवरचारिण्यवाप्सरसः = नन्दनवनम देशसञ्चरणशीला अप्स - रस इव, उत्तरकुरु माणसच्छाओ ' उत्तरकुरूमानुपाप्सरसः = उत्तरकुरुषु मानुष स्वरूपा अप्सरसः 'अच्छरगपेच्छणिज्जाओ' आश्रर्य प्रेक्षणीया: = अद्भुतरूपत्वादाश्रर्येण प्रेक्षणीयाः, तिष्णि पलिओ माई परमाउं पालहत्ता ' त्रीणि पल्योपमानि परमायुः पालयित्वा ' ता अपि - उत्तरकुरुदेवकुरुवनविवरनिवासी नरगणप्रमदा शारीरिक विशिष्ट सौन्दर्य का नाम लावण्य है। यह लावण्य समस्त अवयवों के सौन्दर्य से भी परे स्वरूप की शोभा विशेष रूप होता है। नासिका, नयन, आदि की समुचित जो आकार रचना है वह रूप है । तरुण अवस्था का नाम यौवन है। औदार्य, माधुर्य सौकुमार्य आदि का नाम गुण है। (गंदणवणविवरचारिणीओग्य अच्छराओ उत्तरकुरुमाणसच्छराओ) नंदनवन में विचरनेवाली अप्सराओं के समान ये उत्तरकुरू की भूमि में मनुष्य रूपिणी अप्सराएँ हैं। (अच्छरगवेच्छणिजाओ) अद्भुतरूप शालिनी होने के कारण ये आश्चर्य से देखने योग्य होती हैं, अर्थात् - इनको देखने से मनुष्य को बहुत अधिक आश्चर्य होता है । कारण इनकी रूप संपत्ति ऐसी अद्भुत होती है जो मनुष्यों में और जगह नहीं पाई जाती है। (तिष्णिपलिओ माई परमाउं पालहत्ताताओ वि अवितित्ता कामाणं उवणमंति मरणधम्मं ) इनकी उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य की होती है। इतने कालतक ये देवकुरु उत्तरकुरु અસાધારણ હોય છે. શારિરિક વિશિષ્ટ સૌને લાવણ્ય કહે છે. તે લાવણ્ય સમસ્ત અવયવાના. સૌ ઉપરાંત સ્વરૂપની વિશિષ્ટ શાભારૂપ હોય છે. નાસિકા, નયન આદિની સુડાળ આકાર વાળી રચનાને રૂપ કહે છે. તરુણુ अवस्थाने यौवन डे छे. उदारता, भाधुर्य, अभणता आदि गुण गाय छ, “ णंदणवणविवरचोरिणी ओव्वअच्छराओ उत्तरकुरूमाणसच्छराओ " નંદન થનમાં વિચરતી અપ્સરાએ જેવી તે ઉત્તરકુની ભૂમિમાં મનુષ્યરૂપિણી यासरायो छे. “ अच्छरगपेच्छणिजाओ " मद्भुत सौंदर्यवाजी होवाने अरणे તે સ્ત્રીઓ આશ્ચયથી જોવા જેવી હાય છે, એટલે કે તેમને જોઈ ને મનુષ્યને અત્યત આશ્ચય થાય છે કારણ કે તેમનું રૂપ એટલું બધુ અપૂર્વ હાય છે. કે તે રૂપ મનુષ્યામાં કાઇ પણ જગ્યાએ જોવા મળતું નથી. " तिष्णिपलि माई' परमाउ पालइत्ता ताओ वि अवितित्ता कामाणं उत्रणमंति मरणधम्म " તેમની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ત્રણ પદ્મની ઢાય છે. એટલા સમય સુધી તે દેવકુ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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