________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू० १२ युगलिनीस्वरूपनिरूपणम् जलउडबाहा' भुजङ्गानुपूर्वतनुक गोपुच्छवृत्तसमसंहितननितादेयलडहवाहवा = भुजङ्गवत् = सर्पवत् आनुपूर्वेण तनुको = क्रमशः कृशो तथा गोपुच्छवद् वृत्तौ = वर्तुलौ समसहितौ समत्वयुक्तो मुगुंठितौ च नमिती=सुदीर्घलम्बमानौ आदेयौ=
लाघनीयौ ' लडह' इति सुन्दरौ वाहू-भुजौ यासां तास्तथा 'तंबनहा ' ताम्रनखाः-रक्तवर्णनखसम्पन्नाः ‘मंसलग्नहत्था ' मांसलाग्रहस्ताः-मांसलौ-पुष्टौ अग्रहस्तौ-हस्ताग्रभागौ ' पोचा' इति प्रसिद्धौ यासां तास्तथा, तथा 'कोमल पीवरवरंगुलीया ' कोमल पोवरवराङ्गुलिकाः, तेऽपि मरणधर्ममुपनमन्तीतिवक्ष्यमाणेन सम्बन्धः ।। सू-१२॥
पुनस्ताः कीदृश्यः ? इत्याह-निद्धपाणि लेहा' इत्यादि--
मूलम् ---निद्रपाणिलेहा ससि-सूरसंखचकवर-सोत्थिय विभत्त - सुरइय-पाणिलेहा पीणुण्णय कक्खवस्थिप्पएस गोपुच्छवट्टसमसंहियनाभिय आदेज्जल उडवाहा ) इनकी दोनों भुजाएँ सर्प की तरह क्रमशः कृशहुई होती है। तथा गाय की पूंछ की तरह वर्तुल होती हैं । सम-एकसी तथा संहित-संगठित होती हैं । नमितघुटनों तक लंबी रहती हैं। आदेय-देखने में प्रशंसनीय एवं बड़ी सुहा. वनी लगती हैं । (तंधनहा ) इनकी अंगुलियों के नख लाल वर्ण वाले होते हैं । तथा ( मंगलग्गहत्या ) इनका पोंचा मांसल-पुष्ट होता है । तथा ( कोमलपीवरवरंगुलीया ) इनकी हाथों की अंगलियां कोमल पीवर-पुष्ट एवं वर-उत्तम होती हैं। ऐसी ये स्त्रियां भी कामभोग से अतृप्त ही भरणधर्भ को प्राप्त करती हैं । ऐसा संबंध आगे के वाक्य से जोड लेना चाहिये ।। सू०१२ ॥ " भुयंग-अणुपुव्व-तलुय गोपुच्छवट्ट-समसंहिय-नामिय-आदेज्जल-उडवाहा " તેમની બને ભુજાઓ સર્ષની જેમ ક્રમશઃકૃશ થતી જાય છે, તે ભુજાઓ आयनी पूछडी 24 पतु सम-४ सरी, तथा सहित-सुति, धु! सुधी ainी, मने पाय-प्रशस्त, अने शामिती लागेछ " तंघनहा" तेमनी भांजीमोना नम सास गना डाय छ, तथा “ मंसलगहत्था" तेमना पोया मांस -पुष्ट खाय छ, तथा 'कोमलपीवरवरंगुलिया" तमना थनी આંગળિયે પાવર-પુષ્ટ અને ઉત્તમ હોય છે. એવી તે યુગલિક છીએ પણ કામગથી અતૃપ્ત રહીને જ મૃત્યુ પામે છે એ સંબંધ આગળનાં વા साथे सभक सवा. ॥ सू० १२ ॥
For Private And Personal Use Only