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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir દ प्रश्नव्याकरणसूत्रे पीवर पट्टसंठिय सुसिलिट्ठ विसिट्ठलट्ठसुणिचिय थणथिरसु विद्धसंधीपुरबरफलिहवट्टिय भुजा ॥ सू० १० ॥ टीका:--' भुज्जो' भूयः पुनरपि ' उत्तरकुरुदेव कुरुवगविवरपायचारिणो ' उत्तरकुरु - देवकुरु - वनवित्ररपादचारिणः = उत्तरकुरूणां देवकुरूणां च क्षेत्र विशेषाणां यानि वनविवराणि वनस्थली कंन्दरादिस्थानानि तत्र वाहनाभावात् पादैः = चरणैश्चरन्ति ये ते तथा, नरगणाः युगलिकाः, 'भोगुत्तमा' भोगोत्तमाः भोगप्रधानाः ' भोगलक्खणधरा ' भोगलक्षणधराः स्वस्तिकादि भोगसूचकलक्षणवन्तः, ' भोगसस्सिरिया ' भोगस श्रीका:= भोगशोभाशालिनः ' पसत्थसोम्म पडि पुण्णरुवदरिसणिज्जा' प्रशस्तसौम्यपतिपूर्ण रूपदर्शनीयाः प्रशस्तं सौम्यम् = अतिमनोज्ञं प्रतिपूर्णसुपूर्ण रूपम् = आकृतिर्येषां ते तथा 'सुजायांगसुंदरंगा' अब सूत्रकार " भोगभूमियों के जीवों की भी यही हालत होती हैं " यह कहते हैं - ' भुज्जो उत्तरकुरुदेवकुरु ० इत्यादि० | टीकार्थ :- ( उत्तरकुरुदेव कुरुवणविवरपायचारिणो.) उत्तरकुरु तथा देवकुरु ये भोगभूमियां हैं। इन भोगभूमियों में वाहन सवारी - के अभाव से पैरों से ही वहां की वनस्थलियों में कन्दरा आदि स्थानों मेंभ्रमण किया करते हैं । ( नरगणा) ये युगलिक मनुष्यगण ( भोगुत्तमा ) उत्तम भोगवाले होते हैं। (भोगलक्खणधरा) स्वस्तिक आदि जो भोगसूचक चिन्ह हैं उनसे ये विशिष्ट होते हैं। अतः वे (भोगस स्सि रीया) भोगों को भोगना इसी में ये अपनी शोभा मानते हैं। (पसस्थसोम्म पडिण्णवदरिसणिज्जा ) अतिमनोज्ञ पूर्णरूप से ये दर्शनीय હવે સૂત્રકાર “ ભાગ ભૂમિયાના જીવાની પણ એ જ હાલત હોય છે” ते तावे छे. " भुज्जो उत्तरकुरू देवकुरु" इत्याहि. 66 " नरगणा टीअर्थ - " उत्तरकुरूदेव कुरुवणविवरपायचारिणो" उत्तर पुरु तथा हेवपुरु, मे ભાગ ભૂમિયા છે. તે ભાગ ભૂમિયામાં વાહનને અભાવે પગપાળા જ મુસાફરી થઈ શકે છે. તે પ્રદેશમાં રહેતાં “ " युगसि। भोगुत्तमा ” उत्तम लोग विलास सेवनारा होय छे. " भोगलक्खणधरा " स्वस्ति आदि ने लोग સૂચક ચિહ્નો હાય છે તેમનાથી તેઓ યુક્ત હોય છે. તેથી તેઃ भागससिरीया " लोगोनेो उपलोग श्वासां पोतानी शोला माने थे. " पसत्थ सोम्म पडिपुण्णरुव दरिसणिज्जा " तेथे अतिशय मनोहर भने सर्वांग सुंदर होय छे. सुजायसवगसुंदरंगा " तेमना हरेक शारीरिक मग सुंदर भने 66 For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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