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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२३ प्रश्नव्याकरणसूत्रे प्रद्युम्न - प्रतिवसांबाऽनिरुदनिपधोल्मुक-सारण-गज-मुमुखदुर्मुखादीनां 'जायवाणं' यादवानां = यदुवंशिनां 'अछुट्टाण वि ' अद्धचतुर्थानामपिसार्धतिसृणामपि 'कुमारकोडीणं ' कुमारकोटीनां 'हिययदइया' हृदयदयिताः= हृदयप्रियाः 'देवीए रोहिणीए देवीए देवईए य आणंदयियभावनंदणकरा' देव्या रोहिण्या: बलदेवमातुः देव्यादेवक्याः कृष्णमातुच आनन्दरूपो यो हृदयभावस्तस्य नन्दनकरा: वृद्धिकारकाः ‘सोलसरायवरसहस्साणुजायमग्गा' षोडशराजवरसहस्रानुयातमार्गाः = षोडशसहस्रसंख्यका राजवरा अनुमता भवन्ति मार्गे येषां ते तथा । तत्पदर्शितनीतिमार्गानुवर्तिन इत्यर्थः तदाज्ञाकारिण इति यावत् । सोलसदेवीसहस्सवरणयणहिययदइया ' पोडशदेवीसहस्रवरनयनहृदयदयिताः षोडशसहस्रदेवीनां वरनयनानां चारु लोचनानां सुन्दरीगां हृदययिताः= हृदयवल्लभाः, विशेषगमिदं वासुदेवापेक्षया । 'णाणामणिकणगरयणमोत्तियपनिषध, उल्मक, सारण, गज़, सुमुख, दुर्मुख ओदि साढातीन ३॥ करोड़ यादवकुमारों के लिये ये हृदय से अधिक प्यारे होते हैं । ( देवीए रोहिणीए देवीए देवईए य आणंदहिय भावनंदणकरा) देवी रोहणी के तथा देवी देवकी के आनंदरूप हृदयभाव को ये वृद्धि करनेवाले होते हैं, देवी रोहिणी ये बलदेव की माता तथा देवी देवकी ये कृष्णकी माता हैं। (सोलसरायवरसहस्साणुजायमग्गा) १६ सोल हजार राजा जिनके पीछे२ मार्ग में चला करते हैं, अर्थात् जिस प्रकार वे इन्हें नीतिमार्ग का प्रदर्शन करते हैं उसी नीतिमार्गका ये अनुसरण करते हैं, अथवा उनकी आज्ञानुसार चलते हैं। (सोलस देवीसहस्सवरणयणहिययदइया) १६ सोल हजार स्त्रियों के नयनों को और हृदयोंको ये अत्यंतप्रिय होते हैं, यह विशेषण वासुदेवकी अपेक्षा से कहा गया जानना चाहिये। (णाणामપ્રતિવસાબ, અનિરુદ્ધ નિષધ, ઉમુક. સારણ, ગજ, સુમુખ, દુર્મુખ આદિ સાડા ત્રણ કરોડ યાદવ કુમારને તે પ્રાણથી પણ અધિક વહાલા હોય છે, "देवीए रोहिणीए देवीर देवईए य आणंदहियभावनंहण करा" हेवी डी તથા દેવી દેવકીના હદયના આનંદમાં તેઓ વૃદ્ધિ કરનારા હોય છે. દેવી शcिell वनी माता तथा वा हेवी नी माता छ. “ सोलसरायरसहस्साणुजायमग्गा" १६ से १२ रातो तेमने मनुसरे छे, मेटले तेमना દ્વારા જે નીતિમાર્ગ તેઓ બતાવે છે, એ જ નીતિમાર્ગનું તેઓ અનુસરણ ४२ छ, अथवा तेमनी ॥ प्रमाणे ते या यावे. “सोलस देवीसहस्सवरणयणहिययदेइया " १६ सो र श्रीमान नयन तथा ६४यने तो सत्यत प्रिय साय . या विशेषण वासुदेवने मनुसक्षी मपाये छे. "णाणामणि For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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