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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे गोम्मिक पहारदुम्मणा निब्भच्छणकडुयवयणभेसणागभया. भिभूया अक्खित्तणिवसणामलिगडंडिखंडवसणा उक्कोडालंचनपासुम्मग्गणपरायणेहिं गोम्नियभडेहिं विविहेहिं बंधणेहिं किते-हडिनियडबालरज्जयकुंडंडगवरत्तलोहसंकलं हत्थंदु य वज्झपट्टदामकणिकोडणेहिं अण्णेहि य एवमाइएहिं गो. म्मियभंडोवगरणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं संकोडणमोडणेहिं बझंति मंदपुण्णा ॥ सू० १३ ॥ __टीका-'तहेव' तथैव-पूर्वोक्तप्रकारेण 'केइ ' केचित् ‘परस्स' परस्य 'दब्वं ' द्रव्यं चोरयितुं 'गवेसमाणा' गवेषयन्तः अन्वेषणं कुर्वन्तः ‘गहिया' गृहीताः राजपुरुपैनिगृहीता हताश्च ताडिताः दण्डादिभिस्ततोवद्धाः = रज्ज्यादिभिर्वन्धन प्रापिताः तथा-रुद्धाःकारागारादौ निरुद्धाश्च 'तुरिय' त्वरितं शीघ्रम् 'अधाडिया' अतिधाटिताः राजपुरुपे मिताः कुत्र ? इत्याह-पुरवरं सकल नगरम् । नागरिकजनान् प्रतिदर्शिता इत्यर्थः पुनश्च ‘समप्पिया' समर्पिताः= अब सूत्रकार " जहा फलं देइ" इस चतुर्थ द्वार का प्रतिपादन करते हैं-'तहेवकेइ' इत्यादि। ___टोकार्थ-(तहेव ) इसी पूर्वोक्त प्रकार से (केइ) कितनेक व्यक्ति ( परस्स दव्वं गवेसमाणा) पर के द्रव्य को चुराने की खोज में रहते हुए (गाहिया य) राजपुरुषों द्वारा निगृहीत होकर (हयाय) दण्डादिको द्वारा ताडित किये जाते हैं (बद्धा) रज्ज्वादिकों द्वारा बांध दिये जाते हैं (रुद्धाय) कारागार आदि में बंद कर दिये जाते हैं । (तुरियं अइधाडिया पुरवरं) और नगर निवासियों के समक्ष नगरभर में घुमाये जाते हैं। वे सूत्र४४२ “ जहा फलं देइ” मे याथा हारतुं प्रतिपादन ४२ छ" तहेव केइ " त्यादि ___Nथ-"तहेव” पूर्वात रे “केई” 213 सो "परस्स दव गवेसमाणा" पा२४i द्रव्यने या२पानी शोधमा २९ छे. " गोहियाय" तेन्मे। २४ पुरुषी वा२। ५४15 न" हयाय " ६ वगेरे द्वारा भराय छे. “ बद्धा " हhi माहिमपाय छ, “रुद्धाय” भने समान महिमा ४२राय छे, “तुरिय अइघाडिया पुरवरं " भने शारीमानी समक्ष मा शरमा For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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