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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ सुदर्शिनी टोका अ) ३ सू० ४ परधनलुन्धनृपस्वरूपनिरूपणम् संग्रामे 'अइवयंति' अतिपतन्ति-युद्धं कर्तुं प्रवर्तन्ते । कथं भूताः ? इत्याह'सण्णद्धबद्धपडियर-उप्पाडियचिंधपट्टगहियाउहपहरणा' सन्नद्धवद्धपरिकरोत्पाटितचिन्हपटगृहीतायुधप्रहरणाः-तत्र सन्नद्धाः युद्धसामग्रीभिः सज्जीभूतास्तथा, बद्धः परिकरः कवचो यैस्ते बद्धपरिकराः बद्धकवचाः तथोत्पाटितः दृढं बद्धो मस्तके चिन्हपटः रक्तपट्टादि स्वचिन्हविशेषो यैस्ते तथा गृहीतानि परिधृतानि रिपुहननाथमायुधानि-वाणादीनि प्रहरणानि-खड्गादीनि यैस्ते च तथा पदत्रयस्य कर्मधारयः । 'माढीवरवम्मगुंडिया' माढीवरवर्मगुण्डिताः-तत्र-माढी शरीरत्राणविशेषाः देशीशब्दोऽयं वरवर्माणि प्रधानकवचानि तैर्गुण्डिताः-आच्छादितशरीराः, आविद्धजालिकाः निबद्धलोहकञ्चुकाः ‘कवयकंडगिया' कवचकण्टकिताः-सकण्टक कवचेन कण्टकिताः, 'उरसिरमुहबद्धकंठतोणा' उरः शिरोमुखबद्धकण्ठतोणाः तत्र ( संगामं अइवयंति ) वे स्वयमेव संग्राम में उतर आते हैं-युद्ध करने में प्रवृत्ति वाले हो जाते हैं ऐसे ये राजा लोग (सण्णद्धबद्ध पडियर उप्पा. डियचिंधपट्टगहियाउहपहरणा ) ( सण्गद्ध ) पहिले तो युद्धसामग्री से सज्जीभूत होते है, ( बद्धपडियर ) कवच से बांधकर अपने शरीर को सुरक्षित रखते हैं, (उप्पाडियचिंधपट्ट ) मस्तक पर रक्तपट्टादिरूप चिह्नविशेष को दृढतररूप में बाँधते हैं, (गहियाउहपहरणा) रिपु को नष्ट करने के लिये वाण आदि आयुधों को और खङ्ग आदि प्रहरणों को अपने पासमें रखते हैं (माढीवरवम्मगुंडिया) माढी-शरीर वाणविशेष एवं उत्तम कवच से इनका शरीर आच्छादित रहता है, (आविद्धजालिका ) इनके शरीर पर लोहनिर्मित कवच बंधा रहता है ( कवयकंडगिया) काँण्टे वाले कवच से ये युक्त होते हैं, (उरसिरमुहबद्ध अइवयंति" तेथे ते ०४ २४सभाममा उती ५ -युद्ध ४२वान तैयार ४ नय छ, मेवा ते या "सण्णद्धबद्धपडियरउत्पडिय-चिंधपट्टगहिया. उहपहरणा” “सण्णद्धा' ५i तो युद्धनी सामग्री स४४ ४२१वे छ, " बद्धपडियर" ५५५२ पडेशन पोताना शरी२ने सुरक्षितमानावे . " उप्पाडिय चिंधपट्ट” भ२०४ ५२ र पहि पाहि पास यिने भरभूत रीते सांधे “ गहियाउहपहरणा” दुश्मनन। ना ४२वाने माटे oney All आयुधे। भने तसपा२ माहि शत्रो पोतानी पासे राधे छ “ माढीवरवम्मगुडिया" मातीશરીરના રક્ષણ માટેનું એક સાધન, અને ઉત્તમ બખતરથી પિતાના શરીરને भा२४ाहित ४२ छ, “ आविद्धजालिका" तेमना १२२ ५२ सोढार्नु मत२ सांधेदुखाय छे, " कवयकंडगिया " तेयो sieuni. क्यथा यु४॥ य छ, For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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