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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नव्याकरणसूत्रे एवं 'येऽपि च कुर्वन्त्यदत्तादान' मिति पञ्चमान्तरं निरूप्य ' यथा च कृतम्' इत्यदत्तादानस्य तृतीयान्तारमाह-विउलबले'त्यादि मूलम्-विउलवलपरिग्गहा य बहवो रायाणो परधणम्मि गिद्धा सए दव्ये असंतुहा परविसए अहिहणंति लुद्धा परधणस्स कए, चउरंग समत्तबलसमग्गा निच्छिय वरजोहजुद्धसद्धा य अहमहमितिदप्पिएहिं सेन्नेहिं संपरिवुडा पउमसगडसूइचक्कसागरगरुलबहादिएहिं अणीएहिं उच्छरंता अहिभूय हरंति परधणाई ॥ सू० ४ ॥ ___टीका-विउलालपरिगहा य' विपुलबलपरिग्रहाश्व-तत्र विपुलम् विशालं बलं सामर्थ्य सैन्यं वा परिग्रहा: परिवारो येतो ते तथा, बहवः अने के ‘रायाणो' राजानः 'परधणनि गिद्धा' परधने गृद्धाः परद्रव्यासक्ताः 'सए दवे' स्वके द्रव्ये निजधने 'असंतुहा' असन्तुष्टाः 'लुद्धा' लोभवन्तः सन्तः 'परविसए' परविषयान् भिन्न इसी तरह से और भी व्यक्ति जो दूसरों के द्रव्यहरण करने रूप कार्य में विरति भाव से रहित होते हैं, इन सबको चोरों की श्रेणि में ही परिगणित जानना चाहिये ॥ सू०३ ।। ___ इस तरह " जो अदत्तादान को करते हैं " इस रूप यह पंचम अन्त र कहकर अब सूत्रकार " यथा च कृतम् " इस तृतीय अन्तर को कहते हैं-'विउलबलपरिग्गहा ' इत्यादि । टीकार्थ-(विउलबलपरिग्गहा) विपुल सैन्य एवं परिवारवाले ( बहवो रायाणो) अनेक राजा लोग ( परधम्मि गिद्धा ) परधन में आसक्त तथा (सए दवे असंतुट्ठा ) अपने पास के द्रव्य में असंतुष्ट और લોકો કે જે બીજાના દ્રવ્યનું અપહરણ કરવાના કાર્યમાં વિરતિભાવથી રહિત હોય છે–તે કાર્યમાં લીન હોય છે તે બધાને ચોરેની શ્રેણીમાંજ મૂકવા જઈઓ સૂવા આ રીતે “જે અદત્તાદાનનું સેવન કરે છે તે પ્રકારના આ પાંચમાં सन्तान ४थन दोन वे सूत्रा२ " यथा च कृतम्" तेत्री सन्तान ४थन ४२ छ-" विउलबलपरिग्गहा ” छत्यादि टी -“विउलबलपरिगहा" विधुर सैन्य अने परिवार वा॥ " बहवोरायाणो "मने रातमे। " परधणम्मि गिद्धा" ५२यनमा सxt तथा “सएव्वे असंतुद्वा” पोतानी पासेना द्रव्यथा असंतुष्ट भने "लुद्धा " टोलयुटत For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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