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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२ प्रश्नव्याकरणसूत्रे रक्खियं ' राजपुरुषरक्षितं राजपुरुषैनिषिद्धं, 'सया साहुगरहणिज्ज' सदा साधु गर्हणीयं-निरन्तरं महापुरुषैनिदितं 'पियजणमित्तजणभेयविप्पीइकारगं' प्रिय. जनमित्रजनभेदविनीतिकारक-प्रियजनानां==वान्धवानां मित्रजनानां च भेदः वियोगः विप्रीतिः द्वेषस्तत्कारकं 'रागदोसबहुलं ' रागद्वेपबहुलं स्पष्टम् । 'पुगो य' पुनश्च । उप्पूरसमरसंगामडमरकलिकलहवहकरणं' उत्पूरसमरसंग्रामडमरकलिकलहवधकरणम्-तत्रोत्पूरः-पचुरो यः समरः = मरेण मृत्युना सहितः समर एतादृशः संग्रामः=युद्धं डमरः-स्वचक्रपरचक्रभयलक्षणः कलि:= स्वपक्षराटिः कलहश्च वाग्युद्धं वधः-ताडनमेतेपांकरण कारकं यत्तत्तथा 'दुग्गइविकिया गया है । (सया साहुगरहणिज्ज) तथा महा पुरुषों द्वारा सदा निन्दित प्रकट किया गया है। (पियजणमित्तजणभेयविप्पीइकारगं ) इस कृत्य को करने वाले पुरुषों को अपने बंधच जनों का तथा मित्रजनों का वियोग हो जाता है, अर्थात् उनकी अपीति का भाजन बन जाता है। (रागदोसबहुलं) रागद्वेषकी मात्रा इसमें सबसे अधिक रहती है। (पुणोय) यह फिर ( उधरसमरसंगाम ) मृत्युसहित संग्राम का कारक है, अर्थात् धन आदि हरण करने के लिए जब चोर किसी के यहां जाता है तब वह डटकर इसका साम्हना करता है तो ऐसी स्थिति में चोर की मृत्यु भी हो जाती है । (डमर ) इसमें सदा स्वचक्र और परचक्रका चोरों को भय रहा करता है ( कलि ) कभी २ अपने ही पक्ष के लोगों के साथ तकरार भी हो जाती है । ( कलह ) वाग्युद्ध आपस में कहा सुनी हो जाती है। (बह ) वध-मार पीट हो जाती है । (दुग्गइविणिवायव पुरिसरक्खिय" २४ पुरुषो २॥ तेना निषेध ४२रायेस 2. “सया साहुगरहणिज्ज" तथा साधु पुरुषो द्वारा-मायुरुषो द्वारा ते सहा निध गायेस, " पियजण मित्तजणभेयविप्पी इकारगं " या कृत्य ४२ना२ पुरुषोने पोताना બંધુજનોને તથા મિત્રજનેને વિગ થાય છે, એટલે કે તેમની અપ્રીતિનું पात्र मन ५ छ. “रागदोसबहुलं" तेमा रागद्वेषतुं प्रमाण सौथी पधारे हाय छ. "पुणो य” qणी ते "उप्पूरसमरसंगाम" मृत्यु सहित सामर्नु १२४ 2-मेसे જ્યારે ધન આદિ ચોરવાને માટે ચોર કોઈને ઘેર જાપ છે અને તે ઘર વાળ तेनी भरभूत सामने। अरे तो यार्नु भात थाय छे. " डमर' मा सहा २१ भने ५२५ नो योरी ४२नारने लय २. ४२ थे, “ कलि" पार पोताना ४ पक्षना माणुसे साथे त४२२ ५९५ 25य छ, “ कलह " मापसभा वायुद्ध-सोसायासी ५५ थाय छे. “ वह " १५ भा२। भारी ५४ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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