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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ प्रश्नव्याकरणसूत्र मलिणाई भूयघाओवधाइयाइं सच्चाणि वि ताई हिंसगाई वयणाई उयाहरंति पुटा वा अपुट्टा वा ॥ सू० १२ ॥ ___टोका-'जंताई' यन्त्राणि तिलनिष्पीडनादि यन्त्राणि उदाहरन्तीति वक्ष्यमाणेन सम्बन्धः । ' विसाई 'विषाणि-क्षणमात्रप्राणहारकतालपुटसर्पादीनि स्थावरजङ्गमभेदानि । मूलकम्मआहेवणआविधणाभिओगमंतोसहिप्पओगे' मूलकर्माक्षेपणावर्धनाभियोग्यमन्त्रीपधिप्रयोगान्-मूलकर्म-गर्भघातनादिकम् , अथवा मूलनक्षत्रादि जातस्य तद्दोषशान्त्यर्थ स्नानकर्मादिकम् , आक्षेपणं-नगरादि क्षोभोत्पादनम् , आवर्धन-धनादीनां मन्त्रप्रयोगेण हरणं आभियोग्यं च-वशीकरणादि तच्च द्रव्यतो द्रव्यसंयोगजनितं भावतो विद्यामन्त्रादिसंजातं वलात्कारजनितं वा, तथा मन्त्रौषधिप्रयोगान् मन्त्रप्रयोगान् औषधिपयोगांच, तथा 'चोरियपरदार गमणबहुपावकम्मकरणं' चौर्यपरदारगमनवहुरापकर्मकरण = चौर्यपरस्त्रीगमनादि फिर भी कहते हैं- जंताई विसाई' इत्यादि। टोकार्थ-(जंताई ) यंत्रों को-तिल आदि के निष्पीडक कोल्हू आदि पदार्थों को (विसाई ) क्षणमात्र में प्राणों को नष्ट करने वाले तालपुट, सर्प आदि स्थावर जंगम विषोंको (मूलकम्म-आहेवण-आविंधणआभिओग-मंतोसहि-प्पओगे) गर्भपातन आदि रूप मूलकम को, अथवा मूल नक्षत्र में उत्पन्न हुए बालक के दोषशांति के लिये स्नान कर्म आदि को, नगरादिक में क्षोभोत्पादनरूप आक्षेपण को, मंत्र के प्रयोग से धनादिकों के हरणरूप आवर्धन को, वशीकरणादिरूप आभियोग्य कर्म को, तथा मंत्र प्रयोगों को, औषधि के प्रयोगों को तया (चोरियपरदार गमगबहुपावकम्मकरणं ) चोरी, परदारगमन आदि रूप पापकर्मों के ९७ ५५५ सूत्रा२ ४ छ-"जताई विसाई" त्याहि. टी.---" जंताई" तेस माहि पासवानins पाहि पानि “विसाई" એક ક્ષણમાં જ પ્રાણ હરી લેનાર તાલપુર, સર્પ આદિ સ્થાવરજંગમ વિષેને, " मूलकम्म-आहेवण आविंधण-आमिओग-संतोसहि-ओगे" मधातन माह રૂપ મૂલકર્મને, અથવા મૂળ નક્ષત્રમાં જન્મેલા બાળકની દેષશાન્તિ માટે સ્નાનકમ આદિને, નગરાદિમાં ક્ષોભ ઉત્પન્ન કરવારૂપ આક્ષેપણને, મંત્રપ્રેગ વડે ધનાદિનાં હરણરૂપ આવર્ધનને, વશીકરણદિપ આભિગ્યકમને, તથા મંત્ર प्रयोगाने, मौधि प्रयोगाने तथा " चोरियपरदारगमणबहुपायकम्मकरणं" यारी, ५२६॥२गमन, मा पापी ४२वाने, तथा ' अवखंदे " सैन्य शिमिर For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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