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सुदर्शिनी टोका भ० १ सू० ४७ अध्ययनसमाप्ति
" सुअणाणस्स अविणओ, परिहरणिज्जो सुहाहिलासीहिं। छउमत्थाणं दिट्ठी, पुण्णाणत्थि-त्ति सूइयं इइणा ॥१॥" इति ।
जो सुखाभिलाषी प्राणी हैं उनका कर्तव्य है कि वे श्रुतज्ञान का अविनय छोड़ें। छद्मस्थों की दृष्टि अपूर्ण रहती है यही बात यहां इति' इस पद से सूचित की है ॥१॥ ॥सू०४७॥
॥ प्रथम आस्रव–'अधर्म' द्वार समाप्त ॥
"सुअणाणस्स अविणओ, परिहरगिज्जो सुहाहिलासीहिं ।
छउमत्थाणं दिट्ठी, पुण्णाणत्थि-त्ति मूइयं इइणा ॥१॥ इति ॥ સુખાભિલાષી નું કર્તવ્ય છે કે તેમણે શ્રુતજ્ઞાનને અવિનય કરવાનું छोडी मेय. छत्यानी ष्टि अपू २९ छ, मेरी पात " इति " ५४ दारा मडा सूचित ४२पामा मावी छ. ॥ सू. ४७ ॥ આ રીતે હિંસાદિ પચાસવ દ્વારમાં પ્રાણવધ નામનું
પ્રથમ દ્વાર સમાપ્ત થયું.
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